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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चारित्रनंदी
खर० महिमातिलक; लब्धिकुमार; निधिउदय के शिष्य। इन्होंने भिन्न-भिन्न जिनागमों में से १५१ बोल का एक संग्रह 'रत्नसार्द्धशतक' नाम से किया जिसमें गुरुपरम्परान्तर्गत जिनसिंह, जिनराज, रामविजय, उपा० पद्महर्ष, वाचक सुखनंदन, वा० कनकसागर, वा० महिमातिलक की वंदना की गई है। इनकी ‘पंचकल्याणक पूजा (सं० १८८९ फाल्गुन कृष्ण अष्टमी, कलकत्ता) का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है
पंचकल्याणक जिन तणां पूजे जे मन भाव, अंत- "भवि जन पंचकल्याणक नमिये रे भवि,
चवन, जनम दीक्षा वर नाण, परमानंद पद पंचम जणि।" रचनाकाल- “नंद वसु प्रवचन शशि रूप, संभव चवन दिवस दिन भूप;
भणस्ये गुणस्ये जेनर भाव, तस घर थास्यै निधि सद्भाव।
इसमें भी उपरोक्त गुरुपरम्परा बताई गई है। इन रचनाओं के अलावा 'नवपद पूजा' और '२१ प्रकारी पूजा' नामक दो पूजाओं का भी इन्हें कर्ता बताया गया है परन्तु उनका विवरण नहीं उपलब्ध है।१०९ चारित्रसुंदर
श्री अगरचंद नाहटा ने इनका नाम चरित्रसुंदर बताया है। यह कीर्तिरत्न सूरि शाखा के कवि थे। इनकी इन एक रचना 'संप्रति चौ०' की अपूर्ण प्रति और दूसरी रचना 'स्थूलिभद्र चौ०' (सं० १८२४ अजीम गंज) की स्वयं कवि लिखित प्रति जयचंद भण्डार में उपलब्ध है। श्री नाहटा और देसाई ने इन दोनों ग्रंथो के संबंध में अन्य कोई सूचना नहीं दी।११० चेतन कवि
आपकी कृति 'अध्यात्म बारहखड़ी सं० १८५३ की प्रति जैन सिद्धांत भवन आरा में सुरक्षित है। उसका रचनाकाल इन पंक्तियों में दिया गया है
"संवत् अठात्रेपने, सुकुल तीज गुरुवार,
जेठ मास को ज्ञान हइ, चेतन कियो विचार।"
अर्थात् यह ग्रंथ सं० १८५३, ज्येष्ठ, शुक्ल तृतीय, गुरुवार को पूर्ण हुआ था। इसकी कुछ पंक्तियाँ नमूने के तौर पर प्रस्तुत है
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