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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इस रचना में प्रेमचंद द्वारा निकाली शजय संघ यात्रा का अच्छा वर्णन है। अंत में रचनाकाल इन पंक्तियों द्वारा दर्शाया गया है
“वहि वेद सिद्धि भू संवत्सर, ज्येष्ठ वदि तिथि तीज,
सोमवार संपूरण रचना, कीधी मन नी रीझी रे।"५४
यह रचना सूर्यपुर रास माला में संकलित प्रकाशित है। कनकधर्म
आप का एक गीत ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनलाभ सूरि पट्टधर जिनचन्द्र सूरि गीत शीर्षक के अंतर्गत दूसरे स्थान पर संकलित है। जिनलाभ सूरि का स्वर्गवास सं० १८३४ में हुआ था, इसलिए उसके पश्चात् १८३५ में जिनचंद पट्टासीन हुए और यह रचना उनकी स्तुति में है अत: १९वीं (वि०) की रचना है। इसकी अंतिम दो पंक्तियाँ प्रस्तुत है
"इम बहुविध विनती करी, आवधारो गछराय,
कनक धर्म कहे वंदणा, अवधारो महाराय।५५
इसमें जिनचंद्र की वेदना है, यति कनकधर्म उनके शिष्य रहे होंगे। कनीराम ऋषि
इनका जन्म सं० १८५९ माघ शुक्ल एकादशी को रवींवसर (जोधपुर) में हुआ। इनके पिता का नाम किसन दास पूणोत और माता का नाम राऊ देवी था। सं० १८७० में दुर्गादास महाराज के शिष्य मुनि श्री हषीचंद से इन्होंने दीक्षा ली और संयम पूर्वक जीवन यापन करते हुए सं० १९३९ माघ शुक्ल पंचमी को पीपाड़ में शरीर त्याग किया। नागोर, अजमेर, पीपाड़ तथा पंजाब प्रदेश में इन्होंने विहार किया। चर्चावादी होने के कारण इन्हें वादीभ केशरी कहा जाता था, परन्तु इनके उपदेश प्रधान पद शुष्क नहीं बल्कि भावप्रवण है। आपने जंबू कुमार संज्झाय, कुंभिया के श्रावक की संज्झाय, पडिमा छत्तीसी, सिद्धांतसार और ब्रह्मविलास (८७ ढाल) नामक रचनायें की है।५६ पडिमा छत्तीसी का वर्णन संभवत: 'चर्या' नाम से देसाई ने वर्णित किया है जिसे आगे दे रहा हूँ। इनकी अन्य रचनाओं के विवरण उद्धरण नही उपलब्ध हुए।
श्री देसाई ने इनकी दो रचनाओं का उल्लेख किया है। 'चर्या' का विवरण पहले दिया जा रहा है-चर्या (६९ कड़ी) सं० १८९४ पीपाड़।
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