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उदयचंद - उदयसागर जी ने दिया।
उदयरल
खरतरगच्छ के विद्याहेम आपके गुरु थे। यति विद्याहेम खर० कीर्तिरत्न सूरि की शाखा के यति थे। इन्होंने सीमंधर स्तवन (१८५७ आषाढ़ शुक्ल १०), जिनपालित जिनरक्षित रास सं० १८६७ बीकानेर, जिनकुशल सूरि निशानी सं० १८७४ और ढंढक चौढालिया १८८३ में लिखा।४५ इन रचनाओं का नामोल्लेख देसाई और नाहटा ने किया है किन्तु उदाहरण किसी भी रचना का नहीं प्राप्त हुआ। उदयसागर
आंचलगच्छीय कल्याणसागर के प्रशिष्य और विद्यासागर के शिष्य थे। इनकी रचना 'कल्याण सागर सूरि रास' (सं० १८०२ श्रावण शुक्ल ६, माडंवी) का आदि इस प्रकार हैआदि- "प्रणमी श्री जिनपास ने, धरि मन मां गुरु ध्यान,
सरसती मात पसाय थी, करसूं गुरु गुणगान।
गुरुपरम्परान्तर्गत इस रचना में अंचल गच्छ के कल्याणसागर, अमरसागर और विद्यासागर की वंदना की गई है यथा
"अतिशय जोना अतिघणा, ज्ञान तणो नहि पार, कल्याणसागर सूरिवरा, छे जग मां निरधार। अंचलगच्छ दीपावता, विचर्या देश-विदेश, शुभ संजम ने धारता दीये भवी उपदेश। गच्छाधिष्ठापिक सूरि महाकाली धरे नेह,
गुरु जी पर बहु भाव थी जाणी ने गुणगेह" रचनाकाल- संवत् अठारसो बेनी साले, श्रावण सुद छठ पाया,
ओह रास संपूर्ण करीने, संघनी आगल गाया री। मांडवी नगरे रही चोमासुं, रास अह रचीया,
संभलावी भविक जन ने कंठे, मंगलमाला ठाया। अंत
“यावत चंद्र दिवाकर जगमो, रास अह रसदाया,
लघुजन मन ने मंगलदायी, थजे सदा इम ध्याया रे।"४६ इन्होंने गद्य में भी रचना की है। 'लघु क्षेत्र समास पर बाला० और स्नात्र
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