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उत्तम मुनि
३९ __इन्होंने गद्य में टव्वा के साथ 'संयम श्रेणी समिति महावीर स्तव स्वोपज्ञ टब्बा सहित' की रचना ४ ढालों में सं० १७९९ वैशाख शुक्ल ३ सूरत में की। आदि- "श्री वर्धमान जिनं नत्वा वर्द्धमान गुणास्यदं,
स्वोपज्ञ संयम श्रेणी स्तवस्याओं वितन्यते। केवल ज्ञान दिवाकर जी सिद्ध बुद्ध सुखदाय, आतम संपद भोगने जी, वर्द्धमान जिनराय। वाचक जसविजये जी रच्यो जी संखेपे संज्झाय,
विस्तरी जिनगुण गावतांजी, जीहा पावन थाय। रचनाकाल— संवत नंद विधि मुनि चंदे, देव दयाकर पायो,
प्रथम जिनेसर पारण दिवसे, स्तवना कलश चढ़ायो रे, गुरुपरम्परा
विजयदेव सूरीस पटोधर, विजयसिंध सवायो, सत्य शिष्याधर कपूर विजय बुध, क्षमाविजय पुण्य पायो रे।
रचनास्थान
सूरत मांहे सूरजमंडल, श्री जिनविजय पसायो,
विजयदया सूरि राजे जगपति, उत्तमविजय मल्हायो रे।
यह रचना भी प्रकाशित है। इसे सेठ बाला भाई मूलचंद, अहमदाबाद ने श्री सत्यविजय ग्रंथमाला नं० १ में प्रकाशित किया है।
अष्टप्रकारी पूजा सं० १८१३ का आदि- "श्रुतधर जस समरे सदा, श्रुत देवी सुखकार,
प्रणमी पद पंकज तेहना पभणूं पूजा प्रकार। रचनाकाल- 'तत्त्व शशि अठचंद संवत्सर क्षमाविजय जिन गावो,
उत्तम पदकज पूजा करता, उत्तम पदवी पावो रे।३६
यह रचना विविध पूजा संग्रह पृ० ४५०-६० और पूजा संग्रह आदि कई ग्रंथों में प्रकाशित है। चौबीसी
यह जैन गुर्जर साहित्य रत्नों भाग २ में प्रकाशित है।
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