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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
की। बेगम ने नवाब से कहकर लव जी को ससम्मान मुक्त करवा दिया। यतिवर्ग के द्वेष और षडयंत्र के कारण लव जी ऋषि को काफी कष्ट सहना पड़ा था। इन लोगों ने दिल्ली सम्राट् के कान भरे पर बाद में काजी ने वास्तविक घटना का पता लगा कर इनके विरोधियों को ताड़ना देकर छोड़ दिया और भविष्य में इनका उत्पीड़न न करने की कड़ी आज्ञा देकर वापस लौट गया।
इस शती में भी राजस्थान और गुजरात जैन धर्म के प्रमुख केन्द्र है। सं० १७८९ में जब मराठों ने अहमदाबाद को लूटने के लिए नगर पर आक्रमण किया तो उस समय सेठ शांतिदास के सुयोग्य वंशधरों ने मराठा फौज को संतुष्ट करके नगर की रक्षा की। इसलिए नगर के सभी व्यापारिक संगठनों ने मिल कर इस परिवार को नगर सेठ स्वीकार किया और नगर में बिकने वाले सब माल पर चार आना प्रति सैकड़ा नगर सेठ को प्राप्त करने का अधिकार दिया। यह रकम इस परिवार को बाद में भी शाही खजाने से मिलती रही। सन् १८२२ में दामा जी ने पाटण को मुसलमानों से छीन लिया था और वहाँ के शासक गायकवाड़ हो गये थे। इन शासकों ने शांतिदास के वंशधरों को पालकी छत्र और मसाल धारण करने का सम्मान दिया था। सच पूछिये तो एक ऐसा समय आया जब गुजरात में गायकवाड़, पेशवा और अंग्रेज कम्पनी का तिहरा राज था किन्तु नगर सेठ के परिवार का संबंध सबके साथ सामंजस्यपूर्ण होने के कारण जैनियों को अपनी धर्मचर्चा और व्यापारिक गतिविधियों में कोई विशेष असुविधा नहीं हुई; कम से कम वैसी असुविधा और पीड़ा कभी नहीं हुई जैसी बंगाल में दुहरे शासन प्रबंध के दौरान वहाँ की जनता को हुई थी। सं० १८७४ में अहमदाबाद पूर्णतया अंग्रेजी कंपनी के अधिकार में आ गया था, उस समय भी इन लोगों के प्रयत्न से हेमाभाई इन्स्टीट्यूट, पुस्तकालय और बालिका विद्यालय आदि सार्वजनिक संस्थाओं भी स्थापना की गई। १९०४ सं० में गुजरात वर्नाक्यूलर सोसाइटी की स्थापना हुई। गुजरात कालेज, अनेक मंदिर और प्रतिष्ठान आदि की स्थापना में इन लोगों ने योगदान किया।
१९वीं शती (वि०) में गुजरात में कई अकाल पड़े जिनमें १८०३, १८४०, १८६९ के दुकालों और प्राकृतिक आपदाओं के समय इन लोगों ने जनहितार्थ बहुत द्रब्यदान देकर जनता को राहत पहुँचाया। सारांश यह कि १९वीं शती में भी श्रेष्ठिवर्ग, श्रावकों और साधुओं का देशी रजवाड़ों, नवाबों के साथ सौहाद्रपूर्ण संबंध था और ये लोग जनहिताय कार्यों में तन-मन धन से सहायता करते थे । १८९१ में जेसलमेर के गुमानचंद और उनके पाँच पुत्रों ने शत्रुंजय तीर्थ की संघयात्रा निकाली, पुस्तक भंडार स्थापित कराया। मुम्बई के प्रसिद्ध सेठ मोती शाह ने आदीश्वर की प्रतिमा स्थापित कराई और धर्मशाला आदि बनवाई। अहमदाबाद के सेठ हरीसिंह, केसरीसिंह ने जिनालय और भव्य प्रसाद आदि बनवाये। यह प्रासाद् और विशाल मंदिर अहमदाबाद के दर्शनीय स्थानों
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