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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
(१०) हंति वातं तदम्लत्वात्पित्तं माधुर्य्यशैत्यतः । कर्फ रूक्ष कषायत्वात्फलं धाग्यास्त्रिदोषजित् ॥४०॥ ववस्या, पालमकी, वृष्ण, जातीफलरसा, शिवधात्रिफल, श्रीफल: अमृतफल, धात्री, तिष्यफल और अमृता यह मामले के नाम हैं। इसको हिन्दीमें प्रामला, फारसीमें मामलज, अंग्रजामें Emblic Myrababa lan कहते है। ग्रामलक शब्द तीनों लिंगोंम होता है। आमला हरीतकीके समान गुणोंवाला है किन्तु इतनी इसमें विशेषता है कि रक्तपित्त तथा प्रमेहका दूर करनेमे, वीर्य पुष्टि और रसाय कर्मम यह विशे रूपसे गुण करता है, मला अम्ल रससे वायुका,मधुर रसस और शीततासे पित्तको, रू और कषाय होनेसे कफको जीतता है । इस लिये धात्रा फल त्रिदोषनाशक है ।। ३७ ॥ ३८ ॥ ३९ ॥ ४० ॥
यत्ययस्य फलस्येह वीर्य्य भवति यादृशम् । यस्थतस्येव वीर्येण म जानामपि निर्दिशेत् ॥ ४ ॥ जित २ फल झा जिस २ प्रकारका वीर्य होता है उत्त-२ फल की मज्जाको भी उसी प्रकार के वीर्यवाली जानना चाहिये ॥ ४१ ॥
त्रिफला । पथ्या विभीनधात्रीणां फलैः स्यात्रिफला समैः । फलत्रिकं च त्रिफला सा वरा च प्रकार्तिता॥१२॥ त्रिफला कफपित्तघ्नी मे कुष्ठइरा सरा ।
चक्षुष्या दीपनी रुच्या विषमज्वरनाशिनी ॥४३॥ हरड, बहडा तथा प्रामला इन तीनोंकी गुठलीरहित छाल मम भाग ले नेसे त्रिफला कही जाती है । फलविक, फिफला और बरा यह विफले के नाम हैं। विफहा ककपिननाशक, मेड और कुष्ठको हरने पाला दस्तावर, अग्निदीपक,रुचिकारक और विषमज्वरको दूर करनेवाला है ॥४२॥ १३ ॥