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हरीतक्यादिनिघण्टुः मा. टी. ।
( १९९ )
शल्लक तुवरा शीता पित्तश्लेष्मातिसारजित् । रक्तपित्तत्रणहरी पुष्टिकृत्समुदीरिता ॥ २३ ॥
शल्लकी, गजभक्षा, सुवद्दा, सुरभी, रसा, महेरुणा, कुंदरकी, वल्लकी और बहुवा यह सालई या छल्लके नाम हैं। सालई कसैली, शीतल, पुष्टिकारक तथा पित्त, कफ, अतिसार, रक्तपित्त और व्रणको हरनेवाली. है ।। २२ ।। २३ ।।
सिंशिना । शिंशिपा पिच्छिला श्यामा कृष्णसारा च सा गुरुः । कपिला सैव मुनिभिर्भस्मगर्भेति कीर्तिता ॥ २४ ॥ शिंशिपा कटुका तिक्ता कषाया शोथहारिणी । उष्णवीर्या हरे मेदः कुष्ठश्वित्रवमिक्रिमीन् ॥ २५॥ वस्ति रुग्वणदाहास्रबलासान् गर्भपातिनी ।
शिंशिपा, पिच्छिला, श्यामा और कृष्णसारा यह शीशम के नाम हैं । कपिल शीशमको मुनियोंने भस्मगर्भा कहा है। इसको देश भाषा में टाइली तथा सीसम और अंग्रेजी में Black woods tree कहते हैं।
सीसम - कडु, तिक्त, कसैली, शोथको हरनेवाली, उष्णवीर्य, गर्भको गिरानेवाली तथा मेद, कुष्ठ, वित्र, वमन, कृमि, वस्तिरोग, व्रथा, दाह, रक्तविकार और कफको नष्ट करनेवाली है । २४ ॥ २५ ॥
ककुभः ।
ककुभोऽर्जुननामा स्यान्नदीसर्जश्च कीर्तितः ॥ २६ ॥ इंद्रदुर्वीरवृक्षश्च वीरश्व धवलः स्मृतः । ककुभो शीतलो. हृद्यः क्षतक्षयविषास्रजित् ॥ २७॥ मेदो मेहणान हंति तुवरः कफपित्तहृत् ।
ककुभ, नदी सर्ज, इन्द्रदु, पीर, वक्त पर और अर्जुन के सम्पूर्ण नाम