________________
( ३६२ )
भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
स्थैणेयकस्याभावे तु भिषग्भिर्दीयते गदः । चविकागजपिप्पल्यो पिप्पलीमूलवत्स्मृतौ ॥३३॥ अभावे सोमराज्यास्तु प्रपुत्राटफलं मतम् । यदि न स्याद्दारुनिशा तदा देया निशाबुवैः || ३४ ॥ रसांजनस्याभावे तु सम्यग दाव प्रयुज्यते । सौराष्ट्रय भावतो देया स्फटिका तगुणा जनैः ॥ ३५ ॥
चीतेके प्रभाव में शिखरीका खार अथवा दंती, जवासेके प्रभावमें दुरालभा और तगरके अभाव में कूट लेना चाहिये । मूकी छाल के अभा बजींगणीकी छाल. हींसा के प्रभाव में मानकन्द, लक्ष्मणाके अभाव में मोरशिखा, नीलोत्पलके अभाव में कुमुद और जावित्री के अभाव में लवंग लेना चाहिये । पाक और पर्ण आदिके दूध के अभाव में उसका रस लेना चाहिये । पोहकरमूल तथा लांगली के अभाव में कूट, थुणेष रुके अभाव में भी कूट ही लिया जाता है । चव्य और गजपिप्पली के अभाव मे पिप्पलीमूल, बावचीके अभाव में पनवाडके बीज, और दारुहळदीके अभाव में हल्दी लेनी चाहिये। रसौत न मिले तो हल्दी और सौर ष्ट्री न मिले वो वैसे ही गुणोंवाली फटकरी देनी चाहिये ॥ २७-३५ ॥
तालीसपत्रकाभावे स्वर्णताली प्रशस्यते । भार्ग्यभावे तु तालीप्तं कण्टकारी जटावा ॥ ३६ ॥ रुचिकाभावतो दद्यात्रणं पांसु पूर्वकम् । अभावे मधुयष्ट्यास्तु घातकीच प्रयोजयेत् ॥ ३७॥ अम्लवेतसकाभावे चुक्रं दातव्यमिष्यते । द्राक्षा यदि न लभ्येत प्रदेयं काश्मरीफलम् ॥३७॥ तयोरभावे कुसुमं बन्धूकस्य मतं बुधैः ।