Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 439
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1 ( ३९७ ) ★ घुरुष पहावे और यथायोग्य नमक अदरख और हींग डाले, जब भलीभांति पक जाय तब तापहारी (ताहरी ) कहाती है । ताइरी - तृप्तिदायक, रुचिकारक, बलदायक, वृष्य, कफकारक, पुष्टिदायक, भारी और विनाशक है ॥ ११-१३ ॥ अथ परमात्रम् (खीर ) । पायसं परमान्नं स्यात्क्षीरिकापि तदुच्यते । शुद्धेऽर्द्धपके दुग्धे तु घृताक्तांस्तण्डुलान् पचेत् १४ ते सिद्धाः क्षीरिका ख्याता ससिताज्ययुतोत्तमा । क्षीरिका दुर्जरा प्रोक्ता बृंहणी बलवर्द्धिनी ॥ १५ ॥ पायस, परमान और क्षीरिका ये खीरके संस्कृत नाम हैं I हिन्दी - खीर | गु० - दूधपाक । - प्रधौटे स्वच्छ दूधमें घोसे भुने हुए चावल डाले जब चावल पक जाये तब उसमें स्वच्छ बूरा और घी डाले यह उत्तम खीर बन जाती है खीर दुर्जर पुष्टिकारक और बलवर्द्धक है ॥ १४ ॥ १५ ॥ 'अथ नालिकेरेक्षीर ( नारियल की खीर ) । नालिकेरं तनूकृत्य छिन्नं पयसि गोः क्षिपेत् । सितागण्याज्यसंयुक्ते तत्पचेन्मृदुनामिना ॥ १६ ॥ नालिकेरोद्भवा क्षीरी त्रिग्धा शीतातिपुष्टिदा । गुर्वी सुमधुरा वृष्या रक्तपित्तानिलापहा ॥ १७ ॥ नारियल (गोले ) के छोटे २ टुकडे गायके दूधमें डाले पौर उसमें स्वच्छ खांड और गायका घी डाले, इसप्रकार कर धीमी अग्नि से पकाये तो नारियल की खीर बनजाती है । '; यह खीर - स्निग्ध, शीतल, बहुत पुष्टिकारक, भारी, मधुर, वीर्यवर्द्धक 1 और रक्तपित तथा वातनाशक है ॥ १६ ॥ १७ ॥ Aho Shrutgyanam

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490