Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 447
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (४.५) कानिकवटको रुच्यो वातघ्नः श्लेष्मकारकः शीतः । दाहं शूलमजी में क्षिप्रं हरतेहगामयेष्वहितः ॥५३॥ 'एक नवीन मट्टोका पात्र लेकर उसमें सरसका नेल चुपडे, पचास कर तेलको चुडकर निर्मल जल भरके उसमे र ई, जीरा, नमक, हींग, सोंठ और हलदी इनका चूर्ण डानकर बडे डाल दे और पात्रको मुख बन्द करके तीन दिन तक रखे रहने देवे घे बडे खट्टे हो जायेंगे. उनका कीजि कवटक (कांजी के बडे ) कहते हैं। ये बडे रुचिकारी, गतविनाशक, कफकारक, शीतल पौर दाह, राज सया मजीनाशक हैं, नेवरोगियोंको अहितकारी हैं । ५१-५२ ॥ अथ अमिडकावटकाः (इमली के रडे) अम्लिका स्वेदयित्वा तु जलेन सह मर्दयेत् । तन्नीरे कृतसंस्कारे वटकान्मजये पुनः ॥ ५॥ अम्लिकावटकास्ते तु रुच्या वतिप्रदीपना। वटकस्य गुणैः पूर्वरेपोऽपि च समन्धितः ।। ५९॥ पक्की इमनीको कतरकर जनमें प्रौटावे और जल के साथही मलने, पखात् उस बनाये हुए पानी में बडे छोडदे और नमक मसाला पारि डाल दे तो इमली के बडे बन जाते हैं। यह बडे-रुचि हारी, पग्निदीपक हैं, इसमें पूर्वोक पडों के भी सब गुण हैं॥ ५५ ॥ ५५॥ अथ मुद्गटकाः ( मुंगवरां) मुद्रानां वटकास्तके मजिता लघवो दिमाः। संस्कारजयभावेण त्रिदोषशमना हिताः ॥५६॥ मंगके बडे छाछमें भिगोदे, उनको सेवन करे तो हलके पौर शीतल है। पौर संस्कारके प्रभावसे त्रिदोषनाशक तथा हितकारी होते हैं। And Shrugyanam

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