Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 467
________________ हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1 तत्र यवसक्तवः । यवजाः सक्तवः शीता दीपना लघवः सराः । कफपित्तहरा रूक्षा लेखनाश्च प्रकीर्तिताः ॥ १५० ॥ ते पीता बलदा वृष्या बृंहणा भेदनास्तथा । तर्पणा मधुरा रुच्याः परिणामे बलापहाः ॥ १५१ ॥ कफपित्तश्रमक्षुतडू विधिनेत्रामयापहाः । प्रशस्ता घर्मदाहाय्यग्यायामार्तशरीरिणाम्॥ १५२॥ ( ४२५ ) जौके सत्तु -- शीतल, अग्निदीपक, हलके, दस्तावर, कफ तथा पिसनाथक, रूस और लेखन हैं। सत्तु प्रोंका पीना बलदायक, वृष्य, पुष्टि. कारक, मलभेदक, तृप्ति करनेवाला, मधुर, रुचिकारी, अन्तमें बलमाशक है। और कफ, पित्त, परिश्रम, भूख, प्यास, अण्डवृद्धि और नेत्ररोगको नष्ट करता है, जो पलीना, दाह तथा व्यायाम ( कसरत) करने से व्याकुल हैं, उन मनुष्योंको यह हितकारी है । १५०- १५२ ॥ अथ चणकयवसक्तवः । निस्तुषैश्चणकैर्भृष्टैस्तुर्याशैश्च यवैः कृताः । सक्तवः शर्करा सर्पिर्युक्ता ग्रीष्मेऽतिपूजिताः ॥ १५३ ॥ छिलके रहित भुने हुए चनोंके और चौथे भाग भुने हुए जौके सत्तु बनाकर उसमें बूरा और घी मिलाकर खाये ये ग्रीष्मऋतु में अत्यन्त हितकारी हैं ॥ १५३ ॥ शालिसक्तवः । सक्तवः शालिसम्भृता वह्निदा लघवो हिमाः । मधुरा ग्राहिणो रुच्याः पथ्याश्च बलशुक्रदाः १५४ ॥ शाली चावलोंके सातु-अग्निप्रदीपक, हलके, शीतल, मधुर, ग्राही, विकारी, पथ्य और बल तथा वीर्यवर्धक हैं ।। १५४ ।। Aho ! Shrutgyanam

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