Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 470
________________ ( ४२८ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । ऊची कफप्रदा बल्या लघ्वी पित्तानिलापहा ॥ १६४॥ जौ अथवा गेहूं की अधपकी मंजरी (बाळ) लेकर तृणोंकी भाग में भूम मेसे, उसको ऊवी कहते हैं ऊची ( ऊँबी ) - कफकारक, बलदायक, हलकी और पित्त तथा वातनाशक है ।। १६३ ॥ १६४ ॥ अथ कुल्माषाः (घुघुरी ) । अर्धस्विन्नास्तु गोधूमा अन्येऽपि चणकादयः । कुल्माषा इति कथ्यन्ते शब्दशास्त्रेषु पंडितैः । कुल्माषा गुरवो रूक्षा वातला भिन्नवर्चसः ॥ १६५ ॥ गेहूँ अथवा वने आदिको अध सीजा कर लेवे उसको शब्दशास्त्र - विशारद कुल्माष (घुरी ) कहते हैं । कुल्माष ( घुघुरी) - भारी, रूखी, वातकारक और महभेदक है ॥ १६५ ॥ अथ तिलकुट्टम् ( तिलकुट ) । पललन्तु समाख्यातं सक्षवं तिलपिष्टकम् । पललंमलकृद् वृष्यं वातघ्नं कफपित्तकृत् । बृंहणं च गुरु स्निग्धं मूत्राधिक्य निवर्त्तकम् ॥ १६६॥ तिलोको कूटकर उसमें गुड आदि मिलावे उसको पलल (तिलकुट ) कहते हैं। तिलकुट - मलकारक, वृष्य, वातनाशक, कफ तथा पित्तकर्ता, पुष्टिदायक, भारी, चिकना, और मूत्रकी अधिकताको नष्ट करती है ॥ १६६ ॥ अथ तिलखलिः ( खल, पनि ) । तिलकुट्टन्तु पिण्याकं तथा तिलखलिः स्मृता । पिण्याको लेखनो रूक्षो विष्टम्भी दृष्टिदूषणः ॥ १६७॥ तिलकुड, पिण्याक पर तिलखलि ये खलके संस्कृत नाम हैं । हिंदी -खल ०-खोल । तिलकी खल-ग्लानिकारक, रूक्ष, विरंभी और दृष्टिको दूषित करती १६७ ॥ Aho ! Shrutgyanam

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