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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
अथ तंदुल : ( चावल ) ।
तंडुलो मेहजन्तुघ्नः स नवस्त्वतिदुर्जरः ॥ १६८ ॥
इति श्रीभावप्रकाश निघण्टौ कृतान्नवर्गः ।
यावल-- प्रमेह तथा कृमिरोगको नष्ट करते हैं । जो चावल नवीन होयँ ने अत्यन्त दुर्जर हैं ।। १६८ ।।
इति श्रीभावप्रकाशे हरीतक्यादिनिघण्टौ भाषाटीकायां कृतान्नवर्गः समाप्तः ।
त्रिवसु नव चन्द्रेन्दे मध्याह्ने गुरुवासरे ज्येष्ठशुकस्य सप्तम्यां पूरितशिवशर्मणा ॥
( ४२९ )
दो० - संवत्त्रय वसु नव शशि, (१९८३) मध्य दिवस गुरुवार । ज्येष्ठ शुक्ल तिथि सप्तमी, लिखकर भले प्रकार ॥ १ ॥ हिन्दी भाषायुत कियो, अधिकारिन के हेत । शिवकी शिवपरकाशिका, दैशिक शब्द समेत ॥ २ ॥ प्रभु प्रार्थना ।
जगके वन उपवन के मालिक तुम्हें पूजने आया हूँ । तेरे आयुर्वेदिक वनका पुष्प भेटमें लाया हूँ ॥ ३ ॥ द्रव्य गुणों की केसर से पग पुष्प यह शोभित है । जगके हित अनहित कमोंसे शीत उष्ण हो क्षोभित है ॥ ४ ॥ इसका कुछ २ ज्ञान गुरुचरणोंसे प्रापित कर ईश्वर । शिवशर्मा वर मांगत है चित तव चरणोंमें घर ईश्वर ॥ ५ ॥ दो० - प्रथम भेट लाया प्रभो, लीजे भक्ति पछान ।
नित्य पुष्प लाया करूं, दीजे ऐसा ज्ञान ॥ ६ ॥ शिव शम्मकी प्रार्थना, विनय सहित महाराज । निस दिन आयुर्वेदेको, माने मनुज समाज ॥ ७ ॥
समाप्तश्चायं ग्रन्थः ।
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