Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

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Page 466
________________ ( ४२४ ) भावकाशनिघण्टुः भा. टी. 1 अथ तक्रम् (छाछ ) । तुर्याशेन जलेन संयुतमतिस्थूलं सदम्लं दधि प्रायो माहिषमम्बुकेन विमले मृद्भाजनेगालयेत् । भृष्टं हिंगु च जीरकञ्च लवणं राजीञ्च किञ्चिन्मितां पिष्टांतंत्रविमिश्रयद्भवति तत्तकं न कस्यप्रियम् १४६ तक्रं रुचिकरं वह्निदीपनं पाचनं परम् । उदरे ये गतास्तेषां नाशनं तृप्तिकारकम् ॥ १४७ ॥ अत्यन्त गाठे और खट्टे भैंसके दही को लेकर उसमें चौथा भाग जल डाले पश्चात् मृत्तिकाके पात्र में बसे छानलेवे फिर उसमें भुनी हींग, जीरा, नमक तथा किंचित राई इनको पीसपर मिला देवे तो वक्र (मट्ठा छाछ) तयार हो जाता है, यह छाछ किसको प्रिय नहीं है ? तक्र-रुचिकारी, अग्निको दीपन करनेवाला, अत्यन्त पाचन, पेटके सम्पूर्ण रोगों को नष्ट करनेवाला और तृप्तिकारक है । १४६ ॥ १४७ ॥ अथ दुग्धम् (दूध ) । विदाहीन्यन्नपानानि यानि भुंक्ते हि मानवः । तद्विदाहप्रशान्त्यर्थे भोजनान्ते पयः पिबेत् ॥ १४८॥ दुग्धस्य अपरे गुणा उक्ता एव दुग्धवर्गे । जो मनुष्य दाह करनेवाले अन्नपानका उपयोग करते हैं उनको दाहकी शांति करनेके लिये भोजन के अन्तमें दूध पीना चाहिये, दूधमें जो और गुण हैं वे दुग्धवर्गमें कहे हैं ॥ १४८ ॥ " अथ सक्तवः (सत्तू ) धान्यानि भ्राष्ट्रभृष्टानि यन्त्रपिष्टानि सक्तवः १४९ चावल जौ आदि धान्योंको भाडमें भुनाकर पिसवा लें उसको सत् कहते हैं ॥ १४९ ॥ Aho! Shrutgyanam

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