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(४१०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। तथा हलदीको डालकर उसमें भूने वात बकरी पादिका हड्डीरहित मांस लेवे, उसके टुडे करके धोघे पश्चात तंटमें अथवा घ में धीरे पकावे, इस नोन और जल भी डाले, जब पक जाय ता उसमें गरममसाला डाल देवेनागर वेके पान. चाल,लौंग और मिरच, ये मसा. लेके पदार्थ तपसे जानने । इस प्रकारसे पकाये ह मां का शुद्ध मांस कहते हैं। शुद्ध मांस अत्यन्त वृष्य, बलदाय , रुचिक, पुष्टिकारी, त्रिदोषनाशक, श्रेष्ठ, अग्निको दीपन करनेवाला और धानुषद्धक है । ७४-७८॥
अथ सहद्रकम् ( महर्वासु)। छागादेमौसमू : कुट्टिा खंडितं पुनः । शुद्ध मांसविधानेन पचेदे सहद्रकम् । सहद्रकं गुणग्रन्थे शुद्धामगुणं स्मृतम् ॥ ७९ ॥ बकरे का मस और पूर्वा प्रादिकके टुकडे कर कूट ले पौर उपरोक्त शुद्ध मौसकी रीतिसे पकाये, पकनपर इसका सरद्रक कहते हैं, सहद्रक मांसमें शुद्ध मांसक सदृश गुण है, ये गुण अन्य ग्रन्याम . कहे ॥ ७९ ॥
अथ तक्रमांसम् ( अखनी)। पाकप त्रे घृतं दत्त्वा हन्द्रिां हिंगु भर्जयेत् । छागादेः मकलस्यापि खण्डान्यपि च भजयेत् ८. सिद्धयोग्य जलं दत्त्वा पचेन्मृदुतरं तथा। जीरकादियुते तके मांसखण्डानि तारयेत् ॥ ८॥ तक्रमांसन्न वातघ्नं लघु रुच्यं बलप्रदम् । कफघ्नं पित्तलंकिञ्चित् स्वाहारस्य पाचनम् ।। ८२॥ पाकपात्र (कटाई, डे ची ) में घी डालकर उसमें हलदी तथा हींग भूनले और ब री आदेिके मांस के टुकडे भी उनमें भू फिर यथायोग्य जत गलकर मन्द २ अग्निसे पकावे, पश्च त जीरा यदि पसाला पडे हुए मट्टेमें उन मांसके टुकडोंको डाले, तैयार होनेपर सको तक्रमांस