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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३९५) होता है। कहीं सयोगले प्रभाव से भी गुणों में अन्तर हो जाता है, जैसे कि दुष्ट अन्न भारी है और घो भी भारी है परन्तु वह दुष्ट अन्न या घृत यदि औषधान्तरोंके संयोगसे बना हो तो हलका और हितकारी होता है। १.-३ ॥
अथ भक्तस्य (भातके ) नामानि
साधन गुणाश्च । भक्तमन्नं तथान्धश्च कचित्तूरं च कीर्तितम् । ओदनोऽस्त्री स्त्रियां भिस्मादी देविः पुंसि भाषितः।। सुधौतांस्तण्डुलान् स्फीतांस्तोये पंचणे पचेत् । तद्भक्तं प्रभुतं चोष्णं विशई गुणवन्मतम् ॥५॥ भक्तं वतिकरं पथ्यं तर्पणं रोचनं लघु । अधौतमशृतं शीतं गुरुच्य कफपदम् ॥ ६॥ भक्त, अन्न, अंध, ओदन, भिस्सा और दीदिवे ये भातके संस्कृत नाम: हैं। कहीं कूर भी भातका नाम है ।
भले प्रकार उत्तम रीति से धोये हुए चावलोको पांच गुने जलमें पकावे, जब पकजाय तब वह जल ( मांड) निकाल देवे तो वह उभात निर्मक पौर गुणकारी होता है। ___ भात-अग्निकारक, पथ्य, तृप्तिदायक, रुचिकारक और हलका है। विना धोये हुए चावलोंका, विना मांड निकाला हुमा भात और शीतल हुमा भात भारी, अरुचिकारक और कफाईक है ॥ ४ ॥ ५॥६॥
अथ दाली (दाल) दलितन्तु शमी धान्यं दालिदी की स्त्रिपामुभे । दाली तु सलिले सिद्धा लवणार्द्र कहिङ्गुभिः ॥७॥ संयुका सूपनाम्नी स्यात्कथयन्ते तद्गुणा अथ । सूपोविष्टंभको रूमः शीतस्तु स विशेतः । निस्तुषो भृष्टसंसिद्धो लाघवं सुतरां व्रजेत् ॥ ८ ॥ फलीके ( मुंग, चना, अरहर, उरद यादि) धान्यों को दलनेसे दाल हो.