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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
जाती है। दालि कौर दाली ये दालके नाम हैं । जलमें डालकर दाल को पकावे जब उसीदिज जाय तब उसमें नमक, अदरख और हींग यथा• योग्य डाले तब वह सूप ( दान ) तयार होती है। सूप (दाल) विष्टम्भकारी, रूक्ष पौर विशेष कर शीतल है। भुनी हुई छिलके रहित दालअत्यन्त हलकी है ॥ ७ ॥ ८ ॥ -
अथ कृशरा ( खिचरी ) । तण्डुला दालिमंमिश्रा लवणाई कहिंगुभिः । संयुक्तासलिले सिद्धाकृशरा कथिता बुधैः ॥ ९ ॥ कृशरा शुक्रला बल्या गुरुः पित्तकफप्रदा । दुर्जरा बुद्धिविष्टम्भमलमूत्रकरी स्मृता ॥ ५० ॥
दाल और चावल मिलाकर उनमें नमक, अदरख और हींग डालकर जल में सिद्ध करे उसको विद्वानोंने कृशरा (खिचरी ) कहा है। खिचरी वीर्यवर्द्धक, बलदायक, भारी, कक तथा पित्तको उत्पन्न करनेवाली, दुर्जर, बुद्धि, विष्टम्भ, मल तथा मूत्रकारक है ॥ ९ ॥ १० ॥
अथ तापहरी (ताहरी ) ।
वृते हरिद्रासंयुक्ते माषजां भर्जयेद्वटीम | तण्डुलांश्चापिनिधतान्सहैव परिभर्जयेत् ॥१३॥ सिद्धयोग्यं जलं तत्र प्रक्षिप्य कुशलः पचेत् । लवण कहिंगूनि मात्रया तत्र निक्षिपेत् ॥ १२ ॥ एषा सिद्धिमानः प्रोक्ता तापहरी बुधैः । भवेत्तापहरी बल्या वृष्या श्लेष्माणमाचरेत् । बृंहणी तर्पणी रुच्या गुर्जी पित्तहरा स्मृता ॥ १३ ॥
घोमें हलदी डालकर उसमें उडद की बडी और धुले हुए स्वच्छ चादलोको भूनलेथे, पश्चात् जितने जल में पक जाय उतना जल बढाकर कुशल