Book Title: Harit Kavyadi Nighantu
Author(s): Bhav Mishra, Shiv Sharma
Publisher: Khemraj Shrikrishnadas

View full book text
Previous | Next

Page 438
________________ ( ३९६ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । जाती है। दालि कौर दाली ये दालके नाम हैं । जलमें डालकर दाल को पकावे जब उसीदिज जाय तब उसमें नमक, अदरख और हींग यथा• योग्य डाले तब वह सूप ( दान ) तयार होती है। सूप (दाल) विष्टम्भकारी, रूक्ष पौर विशेष कर शीतल है। भुनी हुई छिलके रहित दालअत्यन्त हलकी है ॥ ७ ॥ ८ ॥ - अथ कृशरा ( खिचरी ) । तण्डुला दालिमंमिश्रा लवणाई कहिंगुभिः । संयुक्तासलिले सिद्धाकृशरा कथिता बुधैः ॥ ९ ॥ कृशरा शुक्रला बल्या गुरुः पित्तकफप्रदा । दुर्जरा बुद्धिविष्टम्भमलमूत्रकरी स्मृता ॥ ५० ॥ दाल और चावल मिलाकर उनमें नमक, अदरख और हींग डालकर जल में सिद्ध करे उसको विद्वानोंने कृशरा (खिचरी ) कहा है। खिचरी वीर्यवर्द्धक, बलदायक, भारी, कक तथा पित्तको उत्पन्न करनेवाली, दुर्जर, बुद्धि, विष्टम्भ, मल तथा मूत्रकारक है ॥ ९ ॥ १० ॥ अथ तापहरी (ताहरी ) । वृते हरिद्रासंयुक्ते माषजां भर्जयेद्वटीम | तण्डुलांश्चापिनिधतान्सहैव परिभर्जयेत् ॥१३॥ सिद्धयोग्यं जलं तत्र प्रक्षिप्य कुशलः पचेत् । लवण कहिंगूनि मात्रया तत्र निक्षिपेत् ॥ १२ ॥ एषा सिद्धिमानः प्रोक्ता तापहरी बुधैः । भवेत्तापहरी बल्या वृष्या श्लेष्माणमाचरेत् । बृंहणी तर्पणी रुच्या गुर्जी पित्तहरा स्मृता ॥ १३ ॥ घोमें हलदी डालकर उसमें उडद की बडी और धुले हुए स्वच्छ चादलोको भूनलेथे, पश्चात् जितने जल में पक जाय उतना जल बढाकर कुशल

Loading...

Page Navigation
1 ... 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490