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भावप्रकाशनिः भा. टी . ।
तडागजाता वषालु तास्वपथ्या नदीभवाः । नैर्झराः शरदि श्रेष्ठा विशेषाऽयमुदाहृतः ॥ १२७ ॥
इति श्रीभावप्रकाश निघण्टौ सवर्गः ।
हेमन्तऋतु में कुएंकी मछली, शिशिरऋतु में तालाव की मछली, वस न्तऋतु में नदी की मछली, ग्रामॠ में हौज (चोए) की मछली, वर्षा - ऋतु में तडागकी मछली और शरद तुमे झरनेकी मछली श्रेष्ठ है, वर्षाऋतु नदीकी मछली अपथ्य है ॥ १२६ ॥ १२७ ॥
इति श्रीवैद्यरत्न रामप्रसादात्मज - विद्यालङ्कारशिवशवैद्यशा विकृत शिवप्र शिकाभाबाटीकायां हरीतक्यादिनिघण्टौ मांसवर्गः समाप्तः ।
तत्र परिमा
अथ कृतान्नवर्गः ।
तत्र अन्नानां साधनप्रकाराः सिद्धानां गुणाश्व ।
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समवायिनि तौ ये मुनिभिर्गणिता गुणाः । काय्यैऽपि तेऽखिला ज्ञेयाः परिभाषेति भाषिताः १ ॥ क्वचित्संस्कारभेदेन गुणभेदो भवेद्यतः । भक्तं लघु पुराणस्य शाळेस्तचिोि गुरुः || २ || क्वचिद्योगप्रभावेण गुणान्तरमपेक्ष्यते । कदन्नं गुरु सर्पिश्च लघूकं सुहितं भवेत् ॥ ३ ॥
जिन पदार्थों में जो गुण कडे हैं, उन पदार्थोंके बनाये हुए अन मैं भी वे सम्पूर्ण गुण होते हैं, यह सामान्यता से कहा है। किसी मनमें संस्कारभेद से अन्य गुण होजाते हैं, जैसे कि पुनि चावल का भात हलका होता है परन्तु वही थालीचावलोंका बना हुम्रा भात और चिउरा भारी
Ano! Shrutgyanam