________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (३४७)
जात्यादिपरत्वेने गुणाः। वहंगेषु पुमान्छेष्ठः स्त्री चतुष्पद जातिषु ॥ ९२ ॥ पराधो लघु पुंसां स्यात्स्त्रीणां पूर्वाद्धमादिशेत् । देहमध्यं गुरुपायं सर्वेषां प्राणिनां स्मृतम् ॥ ९३ ॥ पक्षक्षेपाद्विहंगानां तदेव लघु कथ्यते । गुरुण्यंडानि सर्वेषां गुर्वी ग्रीवा च पक्षिणाम्॥९॥ उरःस्कंधोदरं कुक्षी पादौ पाणी कटी तथा । पृष्ठत्वग्यकृदन्त्राणि गुरूणांह यथोत्तरम् ॥ ९५ ॥ लघु वातकरं मांस खगानां धान्यचाग्णिाम् । मत्स्याशिनां पित्तकरंवातघ्नं गुरु कीर्ततम् ॥१६॥ पलाशिनां श्लेष्मकरं लघु रूसमुदीरितम् । बंदणं गुरु वातघ्नं तेषाने पलाशिताम् ॥ ९७ ॥ तुल्यजातिष्वल्पदेहा महादेहेषु पूजिताः। अल्पदेहेषु शस्यंते तव स्थू लदेहिनः ॥ ९८ ॥ पक्षियोंमें पुरुषजातिके पक्षियोंका मांस और पशुयों में खोजातिक पोंका मांस उनम है, पुरुषों के कार भागका पारसका है और स्त्रियोंके नीचे के भागका मांस उत्तम है । सम्पूर्ण प्राणिगे। मध्य भागका मांस अधिक भारी होता है। पौर पक्षियों के पंव गिरजाने के देहका मध्यभाग हलका होता है। सम्पूर्ण जातिके पक्षियों का अण्डा पार गरयन भारी होता है, तथा छाती, कंधा, उार, कोख, पाँ, हार, कमर, पीठ, स्वचा (चमडा), कलेजा और बात ये पूर्व पूर्वमे पीछे पीछे के भारी होते हैं। धान्य (गेहूँ, ज्वार, बाजरा आदि) खानेव ले पक्षियों का मोस हलका पौर वातकारक है। पछ नी खाने गले पनियों का मात-पित्तका रक, वातनाशक और भारी है। फल खानेवाले पक्षियों का मांस कफकाः रक, हलका और कत्त है। मांस खाने वाले पक्षियों का मांस-पुष्टिकारक,