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( ३७८ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. । वर्त्तकोऽग्निकरः शीतो ज्वर दोषत्रयापदः । सुरुच्यः शुक्रदो बल्यो वर्त्त काल्पगुणा ततः ॥ ५२ ॥
वर्तीक, वर्तक और चित्र, ये घटेर के नाम दें । इसकी जातिके दूसरे पक्षियों को वर्त्तका कहते हैं ।
बटेरका मांस-निकारक, शीतल, रुचिकारी, वीर्यवर्द्धक, वल दायक और ज्वर तथा त्रिदोषनाशक है । वर्त्तकामें इससे हीन गुण हैं ॥ ५२ ॥
अथ लावः (लवा )
लावा विष्किरवर्गेषु ते चतुर्धा मता बुधैः । पांशुल गौरकोऽन्यस्तु पौंड्रको दर्मरस्तथा ॥ २३ ॥ लावा वह्निराः स्निग्वा गरघ्ना ग्राहिका हिताः । पांशुलः श्लेष्मलस्तेषुवी ष्णोऽनिलनाशनः ॥५४॥ गौरी लघुतरो रूक्ष वह्निकारी त्रिदोषजित | पौण्डूकः पित्तत्किञ्चिल घुर्वातकफापहः । दर्भ रक्तपित्तघ्नो हृदामयहरी हिमः ।। ५५ ।।
विष्किरवर्ग में लवा भी है, वह पांशुल, गौरक, पौण्ड़क और दर्भर इस भांति चार प्रकारका होता है।
लवेका मांस - अग्निकारक, स्निग्ध, विषविनाशक, ग्राही और हितकारी है ।
पांशुल जातिका लवा - कफकारक, उष्णवीर्य और वातनाशक है।
गौरकजातिका लवा - अत्यन्त हलका, रुक्ष, प्रनिकारक धौर विदोषनाशक है। पौंडकजातिका वा पिनकर्ता किंचित हलका और वात तथा कफनाशक है । दर्भरजातिका लवा रक्तपित्तना तक हृदयरोगनाशक और शीतल है ।। ५३-५५ ॥
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