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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२३९) रिया, तुथई खपरिया होता है। जस्तसे उत्पन होनेवाला खपरिण रसक नामका खपरिया होता है। दोनों खपरिया गुणों में प्रायः समान होते हैं। १५०।
कासीसम् । कासीसं धातुकासी पांशुकासीसमित्यपि ॥१५॥ तदेव किंचित्पीतं तु पुष्पका सी समुच्यते । कासीसमम्लमुष्णं च तिक्तं च तुवरं तथा ॥१२॥ वातश्लेष्महरं केयं नेत्रकंडूविपप्रणुत् । मूत्रकृच्छाश्मरी श्वित्रनाशन परिकीर्तितम् ॥ १५३॥ कालीस, धातुकासोस, पांगुकासीस यह कासीस के नाम हैं । वही किंचित पीला होने से पुष्पहासोल कहा जाता है । कालोस अम्ल, उष्ण, तिक्त, कसैला,वात क को हरनेवाला,केशों को हितकारी,नेत्रों की खुजली तथा विष विकारको हरने वाला, मूत्रकृच्छ, पथरी और श्वित्र को दूर करजेवाला है ॥ १५१-१५३ ॥
सौराष्ट्री। सौराष्ट्री तुवरी कांक्षी मृत्तालकसुराष्ट्रजा । आढकी चापि साख्याता मृत्स्ना च सुरमृत्तिका १५४ स्फटिकाया गुणाः सर्वे सौराष्ट्रयाअपि कीर्तिताः। सौराष्ट्र', तुधरी, कांझा, मृतालक, सुर ष्ट्रना, आढकी मृत्स्ना, सुरमनिका यह गजनी मिट्टीके नाम हैं। इसके सब गुण फटकड़ोंके समान हैं॥ १५४॥
कृष्णमृत्तिका। कृष्णामृत्क्षतदाहालप्रदरश्लेष्मपित्तनुत् ॥ १५५ ।। कृष्णमृत्तिका क्षत, दाह, रक्त, प्रदर, कक तथा पित्तका नायकरती
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