________________
( ३.४८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । रखता है। मास्यण्डी-भेदन, बलकारक, हलकी, पित्त और वातनाशक, मधुर, बृहण, वीर्यधिक पौर रक्तदोषनाशक है ।। २२ ॥ २३ ॥
गुडम् । इक्षो रसो यः संपको जायते लोष्ठवहृढम् ॥२४॥ स गुडो गौडदेशे तु मत्स्यंडये। गुडो मतः । गुडो वृष्योगुरु स्निग्धोवातघ्नो मूत्रशोधनः ॥२५॥ नातिपित्तहरो मेदकफक्रिमिबलप्रदः। गुडो जीर्णोलघुःपथ्याऽनभिष्यंघनिपुष्टिकृत ॥२६॥ पित्तघ्नो मधुरो वृष्यो वातघ्नोऽमृप्रसादनः।
गुडो नवः कफश्वासकासकृमिकरोऽनिकृत् ॥२७॥ इक्षुका जो रस-खूब पकानेसे लोष्ठक समान दृढ हो जाय उसको गुड कहते हैं । गौड देशमें तो मत्स्यण्डिको ही गुड कहते हैं। गुरु-वीर्यवर्द्धक, भारी, वातनाशक, मनशोधक, पित्तको किंचित हानेवाला, तथा मेद, कफ, कमि और बल को उत्पन्न करनेगाना है। .
पुराना गुड-हटका, पथ्यकारक, अभिष्यंदन को करने वाला, पग्निकारक, पुष्ट करनेवाला, पितनाशक, मधुर, वोर्य धर्द्धक, वातनाशक और रक्तको शुद्ध करनेवाला है । नबीनगुड़-कफ, श्वास, कास, कृमि और बलको बढानेवाला है ।। २४-२७ ॥
श्लेष्माणमाशु विनिहंति सदाईकेण पित्त निहंति च तदेव हरीतकीभिः । शुठया समं हरति वातमशेषमित्थं
दोषत्रयक्षयकराय नमो गुडाय ॥ २८ ॥ गुड-आद्रक के साथ खाया हुआ ककको, हरड साथ खाया हुआ पित्त