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( ३५८ ) भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
खंडं तु विमलं श्रेष्ठं चन्द्रकान्तसमप्रभम् । गव्याज्यसदृशं गंधं रुच्यं मधु वरं स्मृतम् ॥ १० ॥
हरड सूक्ष्म गुठळीवाली तथा मोटी छालवाली सर्व कर्मोंमें श्रेष्ठ होती है । जलमें डालने से डूबजानेवाले भिलावे उत्तम हैं। वाराहके मस्तक के समान कंदवाला वारादीकंद श्रेष्ठ है। कांच के समान वर्णवाला सौवर्चल नमक उत्तम है। स्फटिकके समान कांतिवाला सैंधव नमक अच्छा होता है । स्वर्ण के समान कांतिवाला स्वर्णमाक्षिक उत्तम होता है । वीरबहू डीके समान वर्णवाली मैनखिल श्रेष्ठ है। शिलाजीत जलसे भरे हुए कांसी के बर्तन में डाली हुई न टूटे और जिसमें से तारे निकले वह श्रेष्ठ होती है। कर्पूर चिकना श्रेष्ठ है । छोटी इलायची श्रेष्ठ है । अत्यन्त सुगं षित और भारी चन्दन श्रेष्ठ होता है । अत्यन्त लाल रक्त चन्दन श्रेष्ठ कहा है । कन्येके तुण्ड के समान काळावाला, स्निग्ध तथा भारी अगर श्रेष्ठ
| सुगंधित, हल्का और रूक्ष देवदारु उत्तम है । अत्यन्त सुगंधित और स्निग्ध सरल गुणकारी है । अत्यन्त पीली दारु हलेदी उत्तम है। भारी, त्रिन्ध और ऊपर सफेद जायफल श्रेष्ठ है। मुनक्का वह उत्तम है जिलका गऊ स्तन के समान आकार हो । क्रौंदे के फल के आकारवाली मध्यम मुनक्का होती है । विमल चन्द्रमाकी कांतिके समान प्रभावाली खांड श्रेष्ठ है । गऊके घीके समान गंधवाला तथा रुचिकारक शहद श्रेष्ट होता है ।। १-१००
स्वभावतो हितानि । शालीनां लोहिता शाली षष्टिकेषु च षष्टिंका । शूकधान्येष्वपि यवो गोधूमः प्रवरो मतः ॥ ११ ॥ शिबिधान्ये वरो मुद्रो मसूरश्वाढकी तथा । रसेषु मधुरः श्रेष्ठो लवणेषु च सैंधवम् ॥ १२ ॥ दाडिमामलकं द्राक्षा खर्जूरं च परूषकम् । राजादनं मातुलुंगं फलवर्गे प्रशस्यते ॥ १३ ॥