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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (२४३) पुंस्त्रीनपुंसकानीह लक्षणीयानि लक्षणैः ॥ १७३ ॥ सुवृत्ताः फलसंपूर्णास्तेजोयुक्ता बृहत्तराः। पुरुषास्ते समाख्याता रेखाबिंदुविवर्जिताः ॥१७॥ रेखाबिन्दुसमायुक्ताः षडलास्ते स्त्रियः स्मृताः।। त्रिकोणाश्च सुदीर्घास्ते विज्ञेयाश्च नपुंसकाः॥१७॥ तेषु स्युः पुरुषाः श्रेष्ठा रसबंधनकारिणः । स्त्रियाकुतिकायस्यकांतिस्त्रीणांसुखप्रदाः ॥१७६॥
नपुंसकास्त्ववीयाः स्युरकामाः सत्त्ववर्जिताः। स्त्रियः स्त्रीभ्यः प्रदातव्याः क्ली कीबे प्रयोजयेत् १७७
सर्वेभ्यः सर्वदा देया पुरुषा वीर्यवर्द्धनाः । अशुद्धं कुरुते वस्त्रं कुष्ठं पार्श्वव्यथां तथा ॥१७॥ पांडुतां पंगुरत्वं च तस्मात्संशोध्य मारयेत् । आयुः पुष्टिं बलं वीर्य वर्ण सौख्यं करोतिच १७९ सेवितं सर्वरोगनं मृतं वज्रं न संशयः।
हीरक शब्द पुल्लिंग, वज्र पुँल्लिंग और नपुंसफ लिंग है । चन्द्र और मणिवर तथा वज्र यह हीरके नाम हैं। श्वेतवर्णका हीरा ब्राह्मण, लालवर्णका क्षत्री, पीतवर्णका वैश्य और कृष्णवर्णका शूद्र कहा जाता है। . रसायन कर्ममें ब्रह्मण वर्णका हीरा काम पाता है और सब प्रकारकी सिद्धियोंके देनेवाला है। क्षत्री वर्णका हीरा व्याधियोंको नाश करता है। तथा जरा और मृत्युको दूर करता है। वैश्य वर्णका हीरा धनको देनेवाना
और देहको दृढ करनेवाला कहां है । शूद्र वर्गका हीरा व्याधियों को दूर करता है और भायुको बढानेवाला है। हीरेमें पुरुष, स्त्री और नपुंसक जातिये इन लक्षणोंसे जाननी चाहिये। जो हीरा गोल, सब पोरसे एक