________________
४ २५२ )
भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
कषाया अल्पवर्चस्का मेध्याश्चैव बलावहाः । स्थलजाः स्वादवः: पित्तकफघ्ना वातवह्निदाः ॥ १० ॥ किंचित्तिक्ताः कषायाश्च विपाके कटुका अपि । वापिता मधुरा वृष्या बल्याः पित्तप्रणाशनाः ११॥ श्लेष्मलाश्चाल्पवर्चस्काः कषाया गुरवो हिमाः । वापितेभ्यो गुणैः किंचिद्धीनाः प्रोक्ता अवापिताः १२॥ रोपितास्तु नवा वृष्याः पुराणा लघवः स्मृताः । तेभ्यस्तु रोपिता भूयः शीघ्रपाका गुणाधिकाः ॥ १३॥ छिन्नरूढा हिमा रूक्षा बल्याः पित्तकफापहाः । बद्धविकाः कषायाश्च लघवश्चाल्पतिक्तकाः ॥ १४॥
- शालिधान्य- मधुर, स्निग्ध, बलकारक, किंचित मलको बाँधनेवाले, कसैले हल्के, रुचिकारक, स्वरको ठीक करनेवाले, बीर्यवर्द्धक, शरीरपुष्टिकारक, किंचित वातकफ प्रधान, शीतल, पित्तनाशक और किंचित -मूत्र के करनेवाले होते हैं। जो शालिधान्य, दग्ध की हुई मिट्टी में उत्पन्न होते हैं वह कसैले लघुपाकी, मलमूत्रके निकालनेवाले, रूक्ष और कफनाशक होते हैं । जो धान्य पानीकी क्यारियों में होते हैं वह वात पित्तनाशक, भारी, कफ और शुक्रवर्द्धक होते हैं। कषाय-ग्रल्प मलकारक, बुद्धिवर्द्धक और बलको बढानेवाले हैं। जो धान्य विना पानी की क्यारियोंके साधा' रण खेतों में उत्पन्न होते हैं वह स्वादु, पित्तकफनाशक, वातकारक, अग्निको चैतन्य करनेवाले, किंचित् विक्त, कषाय, और विपाकमें कहोते हैं। जो धान एक क्षेत्र से उखाड कर दूसरे क्षेत्र में लगाए जाते हैं उनको वापित या आरोपित धान्य कहते हैं । प्रारोपित धान्य- मधुर, वृष्य, बलकारक, पित्तनाशक, कफवर्द्धक, अल्पमलके करनेवाले, कषाय,भारी, शीतल होते हैं । जो धान्य उखाड़ कर नहीं लगाए जाते, उनको प्रवापित कहते हैं । भवापित धान्य वापितों से गुणों में कुछ हीन होते हैं । जो धान्य रोपित हैं एक जगह से