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भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
हेमन्त शिशिर र वर्षायें दही खाना उतम है । शरद, ग्रीष्म और वसन्तमें प्रायः दही खाना गहित है ।
जो मनुष्य विधिके विना दही खाता है वह ज्वर, रक्तपित्त, विसर्प, कुष्ठ, पाण्डु और भ्रमको तथा उम्र कामलाको प्राप्त करता है ।
दहीके उपरका जो भाग गाढा तथा स्नेहयुक्त होता है उसे सर कहते हैं । सौर दहीके मण्डको मस्तु कहते हैं ।। ३-२१ ॥
सरः स्वादुर्गुरुर्वृष्यो वातवह्निप्रणाशनः ॥ २२ ॥ साम्लो वस्तिप्रशमनः पित्तश्लेष्मविवर्द्धनः । मस्तु कुमहरं बल्यं लघु भक्ताभिलाषकृत् ॥ २३ ॥ स्रोतोविशोधनं ह्लादि कफतृष्णा निलापहम् | अवृष्यं प्रीणनं शीघ्रं भिनत्ति मलसंचयम् ||२४||
इति दधिवर्गः ।
सर - स्वादु, भारी, वीर्यवर्धक, वात तथा वह्निको नष्ट करनेवाला होता है। तथा खट्टा, दस्तिरोगों को शमन करनेवाला और पित्त और कफको बढानेवाला होता है ।
मस्तु–ग्लानि को हरने वाला, बलकारक, हलका, अबकी इच्छा करनेवाला, नाडियोंका शोधन करनेवाला, आह्लादकारक, अवृष्य, तृप्तिकारक मल संचयको शीघ्र ही तोडनेवाला और कफ, तृष्णा तथा वायुको नष्ट करता है ।। २२-२४ ॥
इति श्रीवैद्यरत्न -- पं० -- रामप्रसादात्मज विद्यालंकार - शिवशमवैद्यकृत-शिवप्रकाशिकाभाषायां हरीतक्यादिनिवण्टौ दधिवर्गः समाप्तः ॥ १२ ॥
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