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(३४२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। के मतमें तीक्ष्ण मुखवाली, भ्रमरके सदृश जो पीली मक्खियां होती है उनको पy कहते हैं। इनके बनाये हुए मधुको आर्य कहते हैं। आर्य मधु-नेत्रोंको अत्यन्त हितकारी, कफ और पिसको हरनेवाला. कसैला पाकमें कटु, तिक्त तथा बल पुष्टिकारक है ॥ १८- २०॥
प्रायो वल्मीकमध्यस्थाः कपिलाः स्वल्पकीटकाः । कुर्वति कपिलं स्वल्पं तत्स्यादौदालकं मधु ॥२१॥
औदालकं रुचिकर स्वयं कुष्टविषापहम् । कषायमुष्णमम्लं च कटुपाक च पित्तकृत ॥ २२॥ प्रायः बम्बी में रहनेवाले छोटे २ पीले कीडे थोडासा पंला मधु बनाते हैं उसको दान करते हैं। श्रौदा क मधु- इचिकारक, स्वरकारक' कुष्ठ और विषको नाश करनेवाला, कसैला, गरम, अाल, पाकमें कटु तथा पित्तकारकरे ॥ ३१ ॥ २२॥
संश्रुत्य पतितं पुष्पायत्तु पत्रोपरि स्थितम् । मधुराग्लकषायं च तद्दालं मधुकीर्तितम् ॥ २३ ॥ दालंमधु लघु प्रोक्तं दीपनीयं कफापहम् । कपायानुरसं रूझं रुच्यं प्रच्छदिमहजित् ।। २४ ॥ अधिकं मधुरं स्निग्धं बृंहणं गुरु भारिकम् । जो मधु पुष्पमें गिरकर पत्ते पर स्थित हो जाता है, उसको दान मधु करते हैं । दाल मधु-अम्ल, कषाय, लघु, दीपन, कफनाशक,कषायातुश्स, रूक्ष.रुचिकारक, छर्दि और प्रमाको नष्ट करनेवाला, अत्यन्त मधुर, स्निग्य बंदण और तोलमें भारी होता है ।। २३ ॥२४॥
नवं मधु भवेत्पुष्टयै नातिश्लेष्महरं सरम् ॥ २५ ॥ - पुराणं ग्राहकं रूक्षं मेदोघ्नमतिलेखनम् ।