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(२९९) . भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । .' अत्यन्त पुराने, विना समयके पैदा हुए, रूस, बुरे स्थानमें पैदा हुए, कर्कश, अत्यन्तशीत, व्यालादिसे दूषित और सम्पूर्ण सूखे शाक त्याग देने योग्य होते हैं। किन्तु केवल मूल का शाक सूखा त्यागने योग्य नहीं होता ॥ ११६--११८॥
संस्वेदजम् । उक्तं संस्वेदजं शाकं भूमिच्छवं शिलींद्रजम् । क्षितिगोमयकाष्ठेषु वृक्षादिषु च तद्भवेत् ॥ ११९॥ सर्व संस्वेदजाः शीता दोषलाः पिच्छिलाश्च ते । गुरवश्छर्यतीसारज्वरश्लेष्मामयप्रदाः ॥ १२० ॥ श्वेताः श्वभ्रस्थलीकाष्ठवंशगोत्रजसंभवाः । नातिदोषकरास्ते स्युः शेषास्तेभ्योविगर्हिताः१२१॥
संस्वेदजाः छाता इति लोके ।
इति शाकवर्गः । संस्वेदज, भूमिपछत्र, शिनीन्द्रज यह संस्वेदज शाकके नाम हैं संस्वेदज शाक वर्षाऋतुमें गोबरे, पुरानी लकड़ियां, पृथ्वी और वृक्षादिकोपर उत्पन्न होते हैं। यह शाक पंजाब में खुम्भ और गुच्छिये आदि नामोंसे प्रसिद्ध हैं। इसे अंग्रेजी में Mushroom कहते हैं। सब संस्वेदज शाक शीक्ल, दोपयर्द्धक, पिच्छल और भारी होते हैं। तथा वमन, अतिसार, गर और कफरोगोंको उत्पन्न करते है। परन्तु श्वेत पवित्रस्थानकी लकड़ी या बांसके ऊपर और गोचर भूमिमें उत्पन्न हुए अत्यन्त दोषकारी नहीं होते। शेष गंदे स्थानों में उत्पन्न हुए निन्दित होते हैं ।। ११९-- १३१॥ इति श्रीवैद्यरत्न पं०--रामप्रसादात्मनविद्यालङ्कार--शिवशर्मवैद्यकृत--शिवप्र.
काशिकाभाषायां हरीतक्यादिनिघण्टौ शाकवर्गः समाप्तः ॥ ९ ॥
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