________________
(२६४) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। रक्त पित्तवद्धक, अग्निवर्धक, राक्षसोंके भयको दूर करनेवाली तथा कण्डू, कुष्ठ, कोठ, कृमि और ग्रहबाधाको दूर करती है।
श्वेत सरसों में भी रक्त सरसोंके समान ही गुण हैं । किन्तु श्वेत सरसों श्रेष्ठ मानी जाती हैं ।। ७०-७२ ।
राजिका। राजी तु राजिका तीक्ष्णगंधा क्षुजनकासुरी ॥७३॥ क्षवः क्षुधाभिजनकः कृष्णिका कृष्णसर्षपः । राजिका कफपित्तघ्नी तीक्ष्णोष्णा रक्तपित्तकृत् ७४ किंचिद्रूक्षाग्निदा कंडू कुष्ठकोष्ठक्रिमीन हरेत् ।
अतितीक्ष्णा विशेषेण तद्वत्कृष्णापि राजिका ॥७॥ तथा हिमो गुरुग्राही तत्पुष्पं प्रदरास्त्रजित् । राजी, राजिका, तीक्ष्णगन्धा, क्षुजनक, आसुरी, चव, क्षुधाभिजनक, कृष्णिका और कृष्णसर्षप, यह गईके नाम हैं। इसका अंग्रेजी नाम Rus tasdsuo है। राई-कफपित्तनाशक, तीक्षण, उष्ण, रक्तपित्तकारक,किंचित रूक्ष तथा कण्डू, कुष्ठ, कोठ मोर कृमियोंको हरनेवाली है। काली राई विशेष रूपसे तीक्ष्ण होती है। तथा उसके फूल-शीतल, भारी और ग्राही हैं। रक्तप्रदरको जीतनेवाले हैं ॥ ७३-७५ ॥
क्षुदधान्यम् । क्षुद्रधान्यं कुधान्यं च तृणधान्यमिति स्मृतम् ७६॥ क्षुद्रधान्यमनुष्णं स्यात्कषाय लघु लेखनम् । मधुरं कटुकं पाके रूक्षं च क्लेदशोषकम् ॥७॥ वातकृद्धद्ध विट्कं च पित्तरक्तकफापहम् । क्षुद्रधान्य, कुधान्य, तृणधान्य या शुदधान्यों के नाम हैं। क्षुद्रधान्यअनुष्ण, कषाय, लघु, लेखन, मधुर, पाकमें कटु, रूक्ष, क्लेदशोषक,
Aho! Shrutgyapam