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( २४८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
शृंगिकः । यस्मिन् गोशृंगके बद्ध दुग्धं भवति लोहितम् १९५ स शृंगिक इति प्रोक्तो द्रव्यतत्त्वविशारदैः । सौराष्ट्रिक देशमें उत्पन्न होने वाला विष सौराष्ट्रिक कहलाता है। जिस विषके गौके सींगमें बांधनेसे दूधका लाल वर्ण हो जाय उसको द्रव्यतत्त्वके जाननेवालोंने शृंगिक विष कहा है ॥ १९५॥
कालकूटः। देवासुररणे देवैर्ह तस्य पृथुमालिनः॥ १९६॥ दैत्यस्य रुधिराज्जातस्तरुरश्वत्थसन्निभः । निर्यास कालकूटोऽस्यमुनिभिःपरिकीर्तितः ॥१९७॥ सोऽहिक्षेत्रे शृंगबेरे कोंकणे मलये भवेत् ॥ १९८॥ देवताओंके और असुरों के संग्राममें देवताबोंसे मारे हुए पृथु मालि दैत्यके रुधिरसे पीपल के समान विषका वृक्ष उत्पन्न हुआ उस वृक्षके निस (गोंद) को ऋषि लोगोंने कालक्ट कहा है। यह कालकूट प्रहिक्षेत्र, शृंगवेर पर्वत, कोंकण और मलयाचलमें उत्पन्न होता है। १९६-१९८॥
हालाहलः। गोस्तनाभफलो गुच्छस्तालपत्रच्छदस्त था ॥१९९॥ तेजसा यस्य दह्यन्ते समीपस्था द्रुमादयः । असौ हालाहलो शेयः किष्किवायां हिमालये२०० दक्षिणाब्धितटे देशे कोंकणेऽपि च जायते । हालाहल विषके वृक्ष ताड के पत्र के समान पत्र होते हैं । द्राक्षा फल के समान फलोंके गुच्छे लगते हैं। इसके समोपके वृक्ष इसके तेजसे फुक जाते है । इसके वृत किष्किन्धा, हिमालय, दक्षिण समुद्रके किना. रेके पहाडों पर और कोंकणमें होते हैं ॥ १९९ ॥ २०॥
Ahad Shrutgyanam'