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(२००) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । यह कोहके नाम हैं । ककुभ-शीतल, हृदयको प्रिय, कसैला तथा पत, क्षय, विष, रतविकार, मेद, प्रमेह, कफ और पित्तको हरनेवाला है। २६ ॥ २७॥
असनः। बीजकः पीतसारश्च पीतशालक इत्यपि ॥२८॥ बधूकपुष्पः प्रियकः सर्जकश्वासनः स्मृतः। बीजकः कुष्ठवीसर्पश्चित्रमेहगदक्रिमीन् ॥ २९ ।। हंति श्लेष्मास्रपित्तं च त्वच्या केश्यो रसायनः । पीक, पीतसार, पीतशालक, पन्धूकपुष्प, प्रियक, सर्जक और असन यह विजयसारके नाम हैं। इसे फारसी में कमर कस और अंग्रेजीमें Indian Kinstree कहते हैं। बीजक-स्वचाके लिये हितकारी, केश वर्धक, रसायन तथा कुष्ठ, विसर्प, रिकब, प्रमेह और कृमि इनको ना करता है । २८ ॥ १९॥
खदिरः। खदिरो रक्तसारश्च गायत्री दंतधावनः ॥३०॥ कंटकी भालपत्रश्च बहुशल्यश्च यज्ञियः । खदिरः शीतलो दन्त्यः कंडुकासारुचिप्रणुत॥३१॥ तिक्तः कषायो मेदोनः कृमिमेहजरव्रणाम् । वित्रशोथामपित्तात्रपांडुकुष्ठककाम् हरेत् ॥३२॥ खदिर, रक्तसार, गायत्री, दन्तधावन, कंटकी, बालपत्र, बहुशस्य पौर यज्ञिय या खरके नाम हैं। खैर शीतल, दन्तों के लिये हितकारी, तिक, कसैला तथा कण्ड, कास, अरुचि, भेद, कृमि, प्रमेह, ज्वर, व्रण, शिवच, ग्योष, धाम, पित, रक्तविकार कुष्ठ और कफ इनको नष्ट करनेवाना • है३०-३२॥
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