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शर
(२०३) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
स एव कथितस्तज्जैराभाषट्पइमोदनी । बबूलः कफनुग्राही कुष्ठकृमिविषापहः ॥ ३७॥ बबूल, किंकिरात, किंकराट, सपीतक और पाभाषट्पदमोदनी यह कीकरके नाम हैं। इसको अंग्रेजीमें Acacia tree कहते हैं । कीकरकफनाशक, ग्राही तथा कुष्ठ, कृमि पौर विषको दूर करनेवाली है ॥ ३७॥
अरिष्टकः। अरिष्टकस्तु मांगल्य कृष्णवर्णोऽर्थसाधनः । रक्तबीजः पीतफेनः फेनिलो गर्भपातनः ॥ ३८॥
अरिष्टकस्त्रिदोषघ्नो ग्रहजिद्गर्भपातनः । परिष्टक, मांगल्य, कृष्णवर्ण, अर्थसाधन, रक्तबीज, पीतफेन, फेनिल गर्भपातन यह रीठेके नाम हैं। इसे हिन्दीमें रीठा, फारसीमें फिदक और अंग्रेजीमें Soapberri Soapnut कहते हैं। रीठा-त्रिदोषनाशक, ग्रहोंको जीतनेवाला और गर्भको गिरानेवाला है ॥ ३८ ॥
पुत्रजीवः ।। पुत्रजीवो गर्भकरो यष्टिपुष्पोर्थसाधकः ॥ ३९॥ पुत्रजीवो गुरुवृष्यो गर्भदः श्लेष्मवातहत । सृष्टमूत्रमलो रूक्षो हिमः स्वादुः पटुः कटुः॥ ४० ॥ पुत्रजीव, गर्भकर, यष्टिपुष्प और अर्थसाधक यह जियापोताके नाम हैं। इसको हिन्दीमें जियापोता करते हैं। जियापोवा-भारी, वीर्यवर्दक, गर्भदायक, कफ तथा वातको हरनेवाला, मत्र और मन लानेवाला, कक्ष, शीतल, मधुर, लवणासयुक तथा कटु है ॥ ३९॥ ४० ॥
इंगुदोंगारवृक्षश्च तिक्तकस्तापसदुमः ।