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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. 1 ( २०५१
शाल्मली ।
शाल्मलिस्तु भवेन्मोचा पिच्छिला पूरणीति च ५० रक्तपुष्पा स्थिरायुश्च कंटकाढया च तुलिनी । शाल्मलिः शीतला स्वाद्वी रसे पाके रसायनी ५१ ॥ श्लेष्मला पित्तवातास्रहारिणी रक्तपित्तजित |
शाल्मलि मोचा, पिच्छिला, पूरणी, रक्तपुष्पा, स्थिरायु, कण्ट काढ्या सौर तूलिनी यह सेमळके नाम हैं । उसको अंग्रेजीमें Sille cotton tree कहते हैं ।
शाल्मलि - शीतल, रस और पाक में मधुर, रसायन, कफकारक तथा पित्त, वात, रक्तविकार और रक्तपित्तको दूर करती है ॥ ५० ॥ ५१ मोचरसः ।
निर्यासः शाल्मलेः पिच्छाशाल्मलिवैष्टकोऽपिच ५२ मोचास्रावो मोचरसो मोचनिस इत्यपि । मोचास्रावो हिमोग्राही स्निग्धो वृष्यः कषायकः५३ प्रवाहिकातीसारामकफपित्तास्रदाहनुत् ।
शाल्मलिनियस पिच्छा, शाल्मलि, वेष्टक, मोवास्त्राव, मोचरस और मोचनिर्यास यह मोचरस के नाम हैं । मोचरस-शीतल, ग्राही, स्निग्ध, वीर्यवर्धक, कषाय तथा प्रवाहिका, अतिसार, आमविकार, कफ, पित्त, रक्त और दाइका नाश करता है ॥ ५१ ॥ ५३ ॥ कूटशाल्मलिः ।
कुत्सिता शाल्मलिः प्रोक्ता रोचना कूटशाल्मलिः५४ कूटशाल्मलिका तिक्ता कटुका कफवातनुत् । भेद्युष्णा लीहजठरयकृद्गुल्म विषापहा ॥ ५५ ॥ भूतानाद विबन्धास्रमेदः शूलकफापहा ।
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कुत्सितशाल्मलि, रोचन और कटारमल यह कूटप्लिके नाम हैं