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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (९३) वर्षक, हलो तथा कफ, वायु, खुजली, कास, मेद कृमि और ज्वरको दूर करनेवाले हैं ।। ३९-४२ ॥ हन्यात्कफमरुत्कंडूकासमे कृमिज्वरान् । तद्वत्प्रोक्ता सिता क्षुद्रा विशेषाद्र्भकारिणी॥ १३ ॥ उसीके समान श्वेत कटेरीके गुण हैं, किन्तु यह विशेषतासे गर्भको धारण करानेवाली है ॥४३॥
गोक्षुरः। गोक्षुरः क्षुरकोऽपि स्यात् त्रिकंटःस्वादुकंटकः । गोकंटको भक्षटंको वनभंगाट इत्यपि ॥ १४ ॥ पलंकपाश्वदंष्ट्रा च तथा स्यादिक्षुगंधिकः । गोक्षुरः शीतलः स्वादुर्बलकृद्धस्तिशोधनः ॥१५॥ मधुरो दीपनो वृष्यः पुष्टिदश्वाश्मरीहरः। प्रमेहश्वासकासार्शकृच्छदोगवातनुत् ॥ ४६॥ गोक्षुर, क्षुरक, विकण्ट, स्वादुकण्टक, गोकण्टक, भटक, वनशृङ्गाट, पढ़कष, अश्वदेष्टा तथा इशुगंधिक यह गोखकरे नाम हैं। इसको हिन्दीमें गोखरू और फारसी तुरुमखार या हस्तचिंघाड कहते हैं।
गोखरू-शीतल, मधुर, बलबद्धक, मसानेको शुद्ध करनेवाला, स्वादु, दीपन, वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक, पथरीको हरनेवाला तथा प्रमेह बास, कास, मश, कृच्छ, हृदयके रोग और वात इनको नष्ट करता
लघुपंचमूलम् । शालपर्णी पृश्निपर्णी वार्ताकी कंटकारिका। गोक्षुरः पंचभिश्चतैः कनिष्ठं पंचमूलकम् ॥ १७ ॥
Mavale