________________
( १३४ )
भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी. ।
तिक्त तथा पित्त, रक्त, प्रमेह, त्रिदोष, प्यास, हृद्रोग, कण्डु, कुष्ठ और बरके हरनेवाली है ।। २५० ।। २५१ ।।
काकमाची ।
काकमाची ध्वांक्षमाची काकाह्वा चैव वायसी २५२ काकमाची त्रिदोषघ्नी त्रिग्धोष्णा स्वरशुक्रदा । तिक्ता रसायनी शोथ कुष्टाशज्वरमेहजित् ॥ २५३ ॥ कटुहिता हिक्काछर्दिहृद्रोगनाशनी ।
काकमाची, ध्वांक्षमाची, काकाह्वा, वायसी यह काकमाचीके नाम हैं। हिन्दी में इसे मकोह कहते हैं। काकमाची त्रिदोषनाशक, स्निग्ध, उष्णा, स्वरवर्द्धक, वीर्य्यप्रद, तिक्त और रसायन है। तथा शोथ, कु.ष्ठ, अर्श, ज्वर, प्रमेह, हिचकी, छर्दी और हृद्रोगको दूर करती है। तथा कटु और नेत्रोंको हितकारी है ।। २५२ ।। २५३ ।।
काकनासा ।
काकनासा तुकाकांगी काकतुंडफला च सा ॥२५४॥ काकनासा कषायोष्णा कटुका रसपाकयोः । कफघ्नी वामनी तिक्ता शोथार्शः श्वित्रकुष्ठहृत्॥२५५॥
काकनासा, काकांगी, काकतुण्डफला यह काकनासाके नाम हैं हिन्दी में इसे कव्वाडोडी कहते हैं। काकनासा- कषाय, उष्ण, रस पाक में कटु, कफनाशक, वमनकारक, तिक्त तथा शोथ, अर्थ और चित्रकुष्ठको नाश करनेवाली है ।। २५४ ॥ २५५ ॥
काकजंघा |
काकजंघा नदीकांता काकतिक्ता सुलोमशा । पारावतपदी दासी काका चापि प्रकीर्तिता ॥ २५६॥