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( १४६) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
छिकनी। छिक्कनी क्षवकृतीक्ष्णा छिकिका प्राणदुःखदा। छिकनी कटुका रुच्या तीक्ष्णोष्णा वह्निपित्तकृत् । वातरक्तहरी कुष्ठकृमिवातकफापहा ॥ ३१० ॥ विक्कनी, सवत, तीक्ष्णा, छिक्किका, घ्राणदुःखदा यह नकछिकनीके नाम हैं। नकछिकनी, कटु, रुचिकारक. तीक्ष्णा, उन्न, वह्नि तथा पित्तको बढानेवाली तथा वातरक्त, कुष्ठ, कृमि और वात कफको हरनेवाली है । नकछिकनीके क्षुप जमीनपर छाये हुए होते हैं और यह छिकनी नामसे प्रसिद्ध है। ३१०॥
वर्वरी।
वर्वरी कबरी तुंगी खरपुष्पाजगंधिका । वर्वरी तु लघू रुच्या हद्या च कफवातहृत्॥३१॥ वर्वरी, कपरी, तुंगी, खरपुष्पा, अजगन्धिका यह नगन्धवावरीके नाम हैं। नगन्धवावरी-हलकी, रुचिकर, हृदयको हितकारी, कफ और वातको जीतनेवाली है ॥ ३११ ॥
ककुंदरः। ककुंदरस्ताम्रचूडः सूक्ष्मपत्रो मृदुच्छदः । ककुंदरः कटुस्तितो ज्वररक्तकफापहा॥३१२॥ तन्मूलमा निक्षिप्तं वदने मुखशोषहृत् । ककुन्दर, ताम्रचूड, सूक्ष्मपत्र, - मृदुच्छद ये कुकरौंदाके नाम हैं। कोई इसे कुकरभंगरा और कुकड छिही कहते हैं। कुकडछिडी-कटु, तिक्त तथा ज्वर, रक्त और कफको हरनेवाली है। इसकी गीली जडको मुखमें रखजैसे मुख सूखना बन्द होता है ॥ ३१२ hrutgyanam