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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
( १८३ )
तत्पक्वं मधुरं पाके शितं विष्टंभि बृंहणम् ॥९९॥ हृद्यं तु पित्तदादाखज्वरक्षयसमीरजित् ।
परूषक, परुष, अल्पास्थि और परापर यह फाल लेके नाम हैं । कच्चा फालसा - कसैला, हलका और पिनकारक है । पकनेपर रस और पाकमें मधुर, शीतल, विष्टम्भ, बृंहण औौर हृदयको हितकारी होता है । तथा पित्त, दाह, रक्त, ज्वर, क्षय और वायुको जीतता है ॥ ९८ ॥ ९९ ॥
तृतम् ।
तूदस्तूतं च यूपश्च क्रमुको ब्रह्मदारु च ॥ १०० ॥ तृतं पक्वं गुरु स्वादु हिमं पित्तानिलापहम् । तदेवामं - गुरु सरमम्लोष्णं रक्तपित्तकृत् ॥ १०१ ॥
तूद, तूत, यूप, क्रमुक और ब्रह्मदाह यह शहतूत के नाम हैं । इसे हिन्दी में सहतूत, फारसी में शहतूत, अंग्रेजी में Mulberrias कहते हैं । पके हुए तूत भारी, स्वादु, शीतल, पित और वायुको हरनेवाले होते हैं। कच्चे तून भारी, दस्तावर, खट्टे, उष्णा और रक्त पितको करनेवाले होते हैं ॥ १०० ॥ १०१ ।
दाडिमम् । दाडिमः करको दंतबीजो लोहितपुष्पकः । तत्फलं त्रिविधं स्वादु स्वाद्वम्लं केवलाम्लकम् १०२ तत्त स्वादु त्रिदोषघ्नं तृड्दाहज्वरनाशनम् । हृत्कंठमुखरोगघ्नं तर्पणं शुकलं लघु ॥ १०३ ॥ कषायानुरसं ग्राहि स्निग्धं मेधाबलावहम् । स्वाद्वम्लं दीपनं रुच्यं किंचित्पित्तकरं लघु ॥ १०४ ॥ अम्लं तु पित्तजनकमामवातकफापहम् । दाडिम, कारक, दन्तबीज और लोहित
यह अनार के नाम हैं ।
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अनार के फल तीन किसमके होते हैं-मीठे, खटूटेमिट्ठे पर केवल खट्टे ।