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भावप्रकाशनिघण्टुः मा. टी. ।
आरी और रक्तपित, चाय, श्वास, काल, हिका और भ्रम इनको दूर करता है ॥ १३३ ॥
जंबीरद्वयम् । स्याजंबीरो दंतशठो जंभजंभीरजंभलाः ॥ १३४ ॥ जंबीरमुष्णं गुर्वम्ल वातश्लेष्म विबंधनुत् । शूलकास कफोत्क्लेशच्छर्दितृष्णामदोषजित् ॥ १३५ ॥ आस्यवैरस्यहृत्पीडावह्निमांद्य कृमीन्हरेत् । स्वल्पजबी रिका द्वष्णाछर्दि निवारणी ॥ १३६ ॥
जम्बीर, दन्तशठ, जंभ, जंभीर, जंभन यह जम्भीरी निम्बू के नाम हैं । इसको हिन्दी में जंभीरी नींबू, फारसी में लिमुने तुर्श और अंग्रेजीमें Lemen कहते हैं। जम्बीर- गरम, भारी, खट्टा, वात, कफ और विवन्धको जीतनेवाला, मुखकी विरसताको हरनेवाला तथा शूल, कास, कफोत्क्लेश, वमन, प्यास, आमके दोष, अग्निकी मन्दता तथा कृमियों को नष्ट करनेवाला है । उसके समान ही स्वल्पजेभीरिका भी तृष्णा तथा वमनको निवारण करती है || १३४ ॥ १३६ ॥
निंबूकम् |
निंबू : स्त्री निंबुकं क्कीबे निंपाकमपि कीर्तितम् | निंबूकमम्लं वातघ्नं दीपनं पाचनं लघु ॥ १३७ ॥
निम्बू यह शब्द खीलिङ्ग तथा निंबुक यह नपुंसक लिङ्गमें होता है । निंबू, निंबुक, निम्पाक यह कागजी निंबू के नाम हैं। कागजी निंबू खटूटा, बातनाशक, दीपन, पाचन और इलका है ॥ १३७ ॥
मिष्टनिंबूकम् ।
मिष्टनिंबूफलं स्वादु गुरु मारुतपित्तनुत् ।