________________
भावप्रकाश निघण्टुः भा. टी . ।
शालफलम् ।
शालं फलं रूक्षशीतं मधुरं स्तंभनं गुरु । कषायं लेखनं स्तन्यवाताध्मान विबंधकृत् ॥ ५५ ॥ पित्तदाहतृषाकासक्षतक्षयविषास्रनुत ।
( १७४ )
शालको हिन्दी में साल और अंग्रेजी में Soltree कहते हैं । शालका फल - रूक्ष, शीतल, मधुर, स्तंभनकारक, भारी, कसैला, लेखन और दूध वर्धक, वायु, आध्मान तथा विबन्धको करता है। तथा पित, दाह, प्यास, खांसी, क्षत, क्षय, विष और रक्तविकारोंको दूर करनेवाला है ॥ ५५ ॥
बिल्वः ।
बिल्वः शांडिल्य शैलूषौ मालूर श्रीफलावपि ॥ ५६ ॥ बालं बिल्वफलं बिल्वकर्कटी बिल्वपेशिका | ग्रहणी कफवातामशूलघ्नी बिल्वपेशिका ॥ ५७ ॥ बालं बिल्वफलं ग्राहि दीपनं पाचनं कटु । कषायोष्णं लघु स्निग्धं तिक्तं वातकफापहम् ॥५८॥ पक्वं गुरु त्रिदोषं स्याद्दुर्जरं पूतिमारुतम् । विदाहि विष्टंभकरं मधुरं वह्निमांद्यकृत् ॥ ५९ ॥
बिल्व, शाण्डिल्य शैलूष, मालूर और श्रीफल यह बेळके नाम हैं। इसे हिन्दी में बिल अथवा बेल, अंग्रेजीमें Bangolkins कहते हैं। विश्व कर्कटी और विश्व पेशिका यह बालबिलके नाम हैं ।
बालबिल — ग्राही और कफ, वात, ग्राम तथा शूलको नष्ट करता है । अन्य ग्रन्थों में लिखा है कि बच्चा बिल-ग्राही, दीपन पाचन, कटु, कसैला, गरम, स्निग्ध और वात तथा कफको हरनेवाला हैं। पक्का बिल - भारी, त्रिदोषकारक, दुर्जर, दुर्गन्धित, दाहोत्पादक, विष्टंभकारक, मधुर पौर अग्निको मन्द करनेवाला है ॥ ५६ ॥ ५९ ॥
w
Aho ! Shrutgyanam
,