________________
( १७२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । वाला है। खट्टा खरबूजा-मधुर, क्षार, रक्तपित्तनाशक और मूत्रकृच्छ्रको दर करनेवाला है ।। ४२-४५ ॥
पुसम्। त्रपुस कंटकिफलं सुधावासः सुशीतलम् ।
पुस लघु शीतं च नवं तृट्कमदाहजित् ।। ४६॥ स्वादुपित्तापहं शीतं तिक्तं कृच्छ्रहरं परम् । तत्पकमलमुष्णं स्यात्पित्तलं कफातनुत् ॥४७॥ तद्बीजं मूत्रलं शीतं रूक्षं पित्तास्रकृच्छ्रजित् । बपुस, कंटकिफल, सुध वास और सुशीतल यह खीरे के नाम हैं। इसे हिन्दीमें खीरा, फारसी में शियारखुर्द और अंग्रेजी में cucumbet कहते हैं। छोटा और नवीन खीरा-शीतल, स्वादु, पिननाशक, तिक्त और कृच्छू, प्याल,ग्लानि पौर दाहको दूर करता है। पका हुआ खीरा-खट्टा, गरम, पित्तकारक तथा कफ और बातको दूर करनेवाला है। वीरेका बीज-मूत्रल, शीतल, रूक्ष और पित्त, रक्तविकार तथा कृपछूको जीतनेवाला है। ४६ ॥४७॥
कमुकम्। घोंटा पूगी च पूगश्च गुवाका क्रमुकस्य तु ॥१८॥ फलं पूगीफलं प्रोक्तमुद्धेगं च तदीरितम् । पूगं गुरु हिमं रूक्षं कषायं कफपित्तजित् ॥ ४९ ॥ मोहनं दीपनं रुच्यमास्यवैरस्यनाशनम् । आद्र तद्गुर्वभिष्यंदि वह्निदृष्टिहरं स्मृतम् ॥ ५० ॥ स्विनं दोषत्रयच्छेदि दृढमध्यं तदुत्तमम् । घोंटा, पूंगी, पूग, गुवाक और क्रमुक यह सुपारीके नाम है। इसके फलको पूगीफल तथा उद्वेग कहते हैं । इसको हिन्दीमें सुपारी, फारसीमें पोपिल और अंग्रेजीमें Betinut Palm कहते है।