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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी. ।
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कुमुद - पिच्छिल, स्निग्ध, मधुर, पित्तको प्रसन्न करनेवाला तथा शीतल है ॥ १५ ॥
कुमुदिनी । कुमुद्रती कैरविका तथा कुमुदिनीति च ॥ १६ ॥ सा तु मूलादिसर्वागैरुदिता समुदिता बुधैः ।
पद्मिन्या ये गुणाः प्रोक्ताः कुमुदिन्यामपि स्मृताः १७॥ मूलादि सम्पूर्ण अङ्गयुक्त कुमुदको मुकुदिनी कहते हैं। कुमुद्धती, कैरविका और कुमुदिनी यह उसके नाम हैं। जो गुण पद्मिनीके कहे हैं वह कुमुदिनी में भी हैं ॥ १६ ॥ १७ ॥
जलकुंभी सेवालम् ।
वारिपर्णी कुंभिका स्याच्छेवाले शैवलं च तत् । वारिपर्णी हिमा तिक्ता लघ्वी स्वाद्वी सरा कटुः ॥ १८ ॥ दोषत्रयहरी रूक्षा शोणितज्वरशोषकृत् । शैवालं तुवरं तिक्तं मधुरं शीतलं लघु ॥ १९ ॥ स्निग्धं दाहतृषापित्तरक्तज्वरहरं परम् ।
वारिपर्णी, कुंभिका, शेवाल और शैवाल यह शैवालके नाम हैं। इसको हिन्दी में शैवाल कहते हैं ।
शैवाल- शीतल, तिक्त, हलका, मधुर, दस्तावर, कटु, त्रिदोषनाशक, रूक्ष तथा रक्तविकार, ज्वर और शोषको नष्ट करता है । शैवाल - कसैला, तिक्त, मधुर, शीतल, हलका, स्निग्ध तथा दाह, प्यास, पित्त, रक्तविकार और स्वर इनको अत्यन्त हरनेवाला है ॥ १८ ॥ १९ ॥
शतपत्री ।
शतपत्री तरुण्युक्ता कर्णिका चारुकेसरां ॥ २० ॥ सहा कुमारी गंधाव्या लाक्षापुष्पातिमंजुला ।