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(१५० ) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
कमलिनीके नवीन पत्रोंको संतिका, बीजकोशको अन्जकर्णिका, केशरको किचल्क तथा इसके रसको मकरेद कहते हैं। पद्मकी नालको मृणाल तथा बिस या भिस, भसीड़ा कहते हैं। .. संबर्तिका-शीतल, तिक्त, कसैली, दाह चौर प्यासको हरनेवाली तथा मूत्रकृच्छ्र, गुदाके रोग और रक्त पित्तको नष्ट करनेवाली है।
मन्जकर्णिका-तिक्त, कसनी, मधुर, शीतल, मुखको स्वच्छ करनेवाली, हल की तथा प्यास, रक्तविकार और कफको जीतने
किंजल्क-शीतल, वीर्यवर्धक, कसैला, ग्राही और कफ, पित्त, प्पास, दाह रक्तविकार, अर्श, विष तथा शोथको जीतनेवाला
मृणाल-शीतल, वीर्यवर्धक, पित्त दाह और रक्तविकारको जीतनेवाला, दुजर, पाकमें मधुर, दूध, वायु तथा कफको बढानेवाला, प्राही, मधुर तथा रूक्ष है। शालूक (कमलका कन्द ) में भी मृणालके समान गुण है ॥ ८-१३।।
स्थलकमलिनी। पद्मचारिण्यतिचराऽन्यथा पद्मा च शारदी। पद्मानुष्णा कटुस्तिक्ता कषाया कफवातजित्॥१४॥
मूत्रकृच्छ्राश्मशूलघ्नी श्वासकासविषापहा । पचारिणी, अतिचरा, अव्यथा, पद्मा और शारदी यह स्थलकमलिनीके नाम हैं।
स्थलकमलिनी-अनुष्ण, कटु, तिक्त; व सैली, कफ और वातको नीतनेवाली तथा मूत्रकृच्छ्र, पथरी शूल, श्वास, कास और विष इनको दूर करती है ॥ १४ ॥
कुमुदम् । श्वतं कुवलयं प्रोक्तं कुमुदं कैरवन्तथा ॥१५॥ कुमुदं पिच्छिलं स्निग्धं मधुरं हादि शीतलम् । श्वेत कुवलयको कुमुद और कैरव कहते हैं। इसे हिन्दीमें भभुत
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