________________
(१४०) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.। नाम हैं। अलम्बुषा हलकी, स्वादु, कृमि, पित और कफको नाश करनेवाली है ॥ २८०॥
दुग्धिका। दुग्धिका स्वादुपर्णी स्यात्क्षीरावी क्षीरिवी तथा । दुग्धिकोष्णा गुरू रूक्षा वातला गभकारिणी२८॥ स्वादुक्षीरा कटुस्तिक्ता सृष्टमूत्रमलापहा । स्वादुर्विष्टंभनी वृष्या कफकोष्टकृमिप्रणुत् ॥२८२॥ दुग्धिका, स्वादुप, शीरावी, क्षोरिवी यह दुधलीके नाम हैं। दुन्धिका गुरु, पक्ष, पातकारक, गर्भकारिणी, स्वादु, दुधवाली, कटु, तिक्त, मुत्र और मलको निकालनेवाली, स्वादु, विष्टम्भकारी, वृष्य तथा कफ, कोढ और कृमियोंको दूर करनेवाली है ॥ २८१॥ २८२ ॥
___भूम्यामलकी। भूम्यामलकिका प्रोक्ता शिवा तामलकीति च । बहुपत्रा बहुफला बहुवीर्या जटापि च ॥ २८३ ॥ भूधात्री वातकृत्तिका कषाया मधुरा हिमा। पिपासाकासपित्तास्रकफपांडुक्षतापहा ॥ २८४॥ भूम्यामलकी, शिवा, तामलकी, बहुफला, बहुवीर्या, जटा यह भई मामलेके नाम हैं। भूई आमला-वातकारक, तिक्त, कषाय, मधुर और शीतल है तथा प्यास, खाँसी, पित्त, रक्त, कफ, पाण्डु और क्षतको हरनेवाला है। भूमिग्रामल-पाताला मामला इन नामोंसे प्रसिद्ध है॥ ३८३ २८४ ॥
ब्राह्मी। ब्राह्मी कपोतका च सोमवल्ली सरस्वती । मंडूकपर्णी मांडूकी वाष्ट्री दिव्या महौषधी २८५॥