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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (१०१) करवीरद्वयं तिक्तं कषायं कटुकं च तत् । व्रणलाघवकृनेत्रकोपकुष्ठव्रणापहम् ॥ ८५॥ वीर्योष्णं कृमिकण्डुघ्नं भक्षितं विषवन्मतम् । करवीर, श्वेतपुष्प, शतकुंभ और अश्वमारक यह सफेद कनेरके नाम हैं। दूसरा नान कनेर-रक्तपुष्प, चंडोत और लगुड कहलाता है । इसे फारसीमें खरजेरा और अंग्रेजीमें Sweet Scented obander कहते हैं, हिन्दीमें कनेर कहते हैं।
दोनों कनेर-तिक्त, कषाय, कटु, व्रणकारक, लाघव करनेवाले, नेत्रपीड़ा, कुष्ठ और व्रणको नष्ट करनेवाले, उष्णवीर्य, कृमि और खुजलीको हटानेवाले, खानेसे विषके समान हानिकर हैं ।। ८४ ॥ ८५ ॥
धत्तरः। धत्तरधूर्तधुत्तूरा उन्मत्तः कनकाह्वयः ॥ ८६ ॥ देवता कितवस्तूरी महामोही शिवप्रियः । मातुलो मदनश्चास्य फले मातुलपुत्रकः ॥ ८७ ॥ धतूरो मदवर्णाग्निवातकृज्ज्वरकुष्ठनुत् । कषायो मधुरस्तितो यूकालिक्षाविनाशनः ॥८८॥
उष्णो गुरुव्रणश्लेष्मकंडूकृमिविषापहः । धनूर, धूर्त, धुत्तूर, उन्म म, स्वर्णके पर्यायवाचक सब शब्द, देवता, कितव, तूरी, महामोही, शिवप्रिय, मातुन और मदन यह धतूरेके नाम हैं। इसके फलको मातुलपुत्रक कहते हैं । अंग्रेजी में इसे Thorn Apple समझते हैं।
धतूरा-मदकारक, वर्णकारक, अग्नि तथा वायुद्धक, ज्वर और कुष्ठको मारनेवाला, कषाय, मधुर, तिक्त, यूका पौर लिक्षानाशक, उष्ण, भारी तथा व्रण, कफ, कंड, कृमि और विषको नाश करनेवाला १॥८६-८८॥
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