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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
शुद्ध करती है, पुटपाक की हुई मलको बांधती है, भूनकर खाई हुई त्रिदोको नाश करती हैं ।
यति हरीतकी भोजनके साथ खाई जावे तो बुद्धि, बल और न्द्रियों को विवसित करती है; वात, पित्त कफके विकारोंको निर्मूल करती है. मूत्र विष्ठा और मतोंको साफ करके निकाल देती है । यदि हरडको भोजन के अन्तमें सेवन किया जाय तो अन्न पान के मिथ्या उपयोग करने से उत्पन्न हुए बात पित्त कफ के सब विकारोंको दूर करती है ॥ २८-३० ॥
लवणेन कर्फ हंति पित्तं इंति सशर्करा । घृतेन वातजान्रोगान्सर्वरोगान्गुडान्विता ॥ ३१ ॥ सिंधूत्थशर्करा शुंठी कणामधुगुडैः क्रमात् । वर्षादिष्वभया प्राश्या रसायनगुणैषिणा || ३२ ॥
हरड लगाके साथ कफको, मिश्री के साथ पित्तको, घृतके साथ वातविकारों को और गुड के साथ सब रोगों को दूर करती है। इरड-सैंधा नमक, शर्करा, सौंठ, पीपल, शहद और गुडके साथ क्रमपूर्वक वर्षा, शरद, हेमन्त शिशिर, वसन्त और ग्रीष्म ऋतुमें खानेसे रसायन के गुणोंको करती है अर्थात् बुढापे और बीमारीको दूरकरके उमरको बढाती है ।। ३१ ।। ३२ ।।
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हरड़ सेवनके अयोग्य प्राणी । अध्वातिखिन्नोबलवर्जितश्च रूक्षः कृशोलंघनकर्षितश्च । पित्ताधिको गर्भवतीचनारी विमुक्तरक्तस्त्वभयांनखादेत् ॥
जो मनुष्य मार्ग चढकर थक गया हो, बलरहित हो, रूक्ष हो, कृश हो, जो लंघन करने से कृश होगया हो, जिसके शरीर में पित्त अधिक हो, जिसका रक्त निकलवाया गया हो और गर्भवती स्त्री इनको इरड़का सेवन नहीं करना चाहिये ॥ ३३ ॥
Aho! Shrutgyanam