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हरीतक्यादिनिघण्टुः भा. टी.। (६३) स्निग्धोष्ण कर्णकण्ठाक्षिरोगरक्षोहरःस्मृतः ॥ २७ ॥ कफानिलस्वेददाहकासमूच्छावणापहः। सरल,पीतवृक्ष, सुरभिदारुक यह सरलके संस्कृत नाम हैं। इसे हिन्दीमें धूपवृक्ष तथा अंग्रेजीमें Long Leved pine कहते हैं।
सरल-मधुर, तिक्त, पाक और रसमें कटु, हल्की, स्निग्ध, गरम और कर्णरोग, अक्षिरोग. कण्ठरोग, भूतादिकोंकी पीडा, कफ, बायु, स्वेद, दार, कास, मूच्छी तथा व्रणको नष्ट करता है ॥ २६ ॥ २७ ॥
तगरम् । कालानुसाऱ्या तगरं कुटिलं नहुषं नतम् ॥ २८ ॥ अपरं पिण्डतगरं दण्डहस्तं च बहिणम् । तगरद्वयमुष्णं स्यात्स्वादु स्निग्ध लघु स्मृतम्॥२९॥ विषापस्मारशूलाक्षिरोगदोषत्रयापहम् । कालानुसार्य, तगर कुटिल, नहुष तथा नत यह प्रथम प्रकार की तगरके नाम हैं। पिण्डतगर, दण्डहस्त तथा बहिण यह दूसरी तगरके नाम हैं। तगरको हिन्दीमें तगर कहते हैं।
दोनों प्रकारकी तगर--उष्णमधुर, स्निग्ध, हल्की और विष, अपस्मार शूल, अक्षिरोग तथा त्रिदोष इनको नष्ट करते हैं ॥ २८ ॥२९॥
- पद्मकम् । पद्मकं पद्मगन्धि स्यात्तथा पद्माह्वयं स्मृतम् ॥३०॥ पद्मकं तुवरं तिक्तं शीतलं वातलं लघु । विसर्पदाहविस्फोटकुष्ठश्लेष्मास्त्रपित्तनुत् ॥३१॥ गर्भसंस्थापनं वृष्यं वमिव्रणतृषाप्रणुत् । पनक, पद्मगन्धि, पद्माहय यह पद्मकके संस्कृत नाम हैं इसे हिन्दीमें पप्रकाष्ठ तथा पमाख करते हैं।