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(८८) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. । माम हैं। कालकाके समीप कौशल्या नदी के किनारे इसके बडे वृक्ष पीपनके समान चौडे पत्नोंवाले होते हैं, वहां यह कुम्हार नामसे प्रसिद्ध है।
काश्मरी-कसैली, तिक्त उष्णवीर्य, मधुर, भारी दीपन, पाचन, बुद्धि, वर्धक, दस्तावर तथा भ्रम, शोथ, विदोष, प्यास, आम, शूल, अश, विष, दाह पौर ज्वरको दूर करनेवानी है। काश्मरीका फल-धातुओंको पुष्ट करनेवाला, वीर्यवर्धक, भारी, केशे को बढानेवाला और रसायन, पाकमें मधुर, शीतल, स्निग्ध, कसैला, अम्ल, शुद्धिकारक और वात, पित्त, प्यास, रक्त विकार, क्षय, मूत्ररोग, मलका बन्ध, दाह, वात, प्यास, रक्त, पित्त, क्षत और क्षय इनको नष्ट करता है ॥ १४-१८॥
पाटला।
पाटली पाटलामोघा मधुदूती फलेरुदा ॥ १९ ॥ कृष्णवृन्ता कुबेगक्षी काचस्थाल्यलिवल्लभा। ताम्रपुष्पी च कथिता परा स्यात्पाटला सिता।।२० मुष्कको मोक्षको घण्टा पाटलिः काष्ठपाटला। पाटला तुवरा तिक्तानुष्णा दोषत्रयापहा ॥ २१ ॥ अरुचिश्वासशोथार्शश्छदिहिकातृषाहरी । पुष्पं कषायं मधुरं हिमं हृद्यं कफास्रनुत् ॥२२॥ पित्तातीसारहृत्कंठयं फलं हिकास्त्रपितहत ।
पाटली, पाटला, अमोघा, मधुदूती, फलेकहा, कृष्णचन्ता, कुराक्षी, काचस्थाली, अलिबल्लभा, ताम्रपुष्पी यह पाढल के नाम हैं। मुष्कक, मोक्षक, घण्टा, पाटली, काष्ठपाटला, यह घंटापाढनके नाम हैं। इसको अंग्रेजी में Banduknut कहते हैं ho! Shrutgyanam .