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भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी. ।
तिक्ता तीक्ष्णा च कटुका उष्णास्यमलनाशिनि । शोथ का सब्रणश्वास शूलहिध्मग्रहापहा ॥ १०० ॥
शटी पछाशी, षड्ग्रन्था, सुव्रता, गन्धमूलका, गन्धारिका, गन्धवपु, वधू और पृथुपला शिका यह गन्धपकाशीके नाम हैं। इसे हिन्दीमें गन्धपलाशी, फारसी में जरंबाद कहते हैं ।
गन्धपलाशी - कसैली 'ग्राही, हलकी, तिक्त, तीक्ष्या, कटु, गरम, मुखके मलको नष्ट करनेवाली तथा शोथ, कास, व्रण, श्वास, शूल, हिम्म, हिचकी तथा ग्रहको दूर करनेवाली है ।। ९८- १०० ॥
प्रियंगुः ।
प्रियंगुः फलिनी कांता लता च महिलाह्वया । गुन्द्रा गन्धफली श्यामा विष्वक्सेनांगनाप्रिया ॥ १॥ प्रियंगुः शीतला तिक्ता तुवरानिलपित्तहृत् । रक्तातीसार दौर्गध्यस्वेददाहज्वरापहा ॥ २ ॥ गुल्मतृइविषमेहनी तद्वद्गन्धप्रियंगुका । तत्फलं मधुरं रूक्षं कषायं शीतलं गुरु || ३ || विबन्धाध्मानबलकृत् संग्राहि कफपित्तजित् ।
• प्रियंगु, फलिनी, कान्ता, लता, गुन्द्रा, गन्धफली, श्यामा, विष्वक्सेना, अंगना प्रिया, यह तथा महिलाके सब नाम प्रियगुके नाम हैं। इसको हिन्दी में फूल प्रियंगु कहते हैं ।
प्रियंगु - शीतल, तिक्त, कसैली, कफ और पित्तको हरनेवाली, रक्तविकार, अतिसार, दुर्गन्धता, स्वेद, दाह, ज्वर, गुल्म तथा तृषाको नष्ट करनेवाली है, गन्धप्रियंग भी इन्हीं गुणोंवाली जाननी । प्रियंगुका फल मधुर, रूक्ष, कसैला, शीतल, भारी, ग्राही, कफ और पित्तको जीवनेवाला तथा मलके बन्ध, प्राध्मान और बलको करता है ॥ १-३ ॥
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