________________
हरीतक्यादिनिघण्टुः मा. टी.। (१७) पंचकोलं रसे पाके कटुकं रुचिकृन्मतम् ॥ ७२ ॥ तीक्ष्णोष्णं पाचनं श्रेष्ठं दीपनं कफवातनुत् । गुल्मप्लीहोदरानाहशूलघ्नं पित्तकोपनम् ॥ ७३ ॥ पीपल, पिप्पलीमूल, चव्य, चीता और सोंठ इन पांचोंको एक २ कोल (आठ २ मासे) लेकर एकत्रित करे उसे पञ्चकोल कहते हैं। पञ्चकोलरस तथा पाकमें कटु, रुचिकारक तीक्ष्ण,गरम, पाचन करनेवाला, अग्निदीपक, कफ वातको नष्ट करनेवाला तथा गुल्म,प्लीहा तिल्ली, उदररोग, आनाह और शूलको हरनेवाला और पित्तको प्रकुपित करनेवाला है ।। ७१-७३।
पडूषणम् । पंचकोलं समरिचं षडूषणमुदाहृतम् । पंचकोलगुणं तत्तु रूक्षमुष्णं विषापहम् ॥ ७४॥ पञ्चकोलमें काली मिरच मिलादेनेसे पडूषण बन जाता है। पञ्चकोलरूखा, गरम और विषों का हरनेवाला है ॥ ७४ ॥
यवानिका । यवानिकोग्रगंधा च ब्रह्मदर्भाजमोदिका। सैवोक्तादीप्यका दीया तथा स्याद्यवसाह्वया ॥७॥ यवानी पाचनी रुच्या तीक्ष्णोष्णा कटुका लघुः। दीपनी च तथा तिक्ता पित्तला शुक्रशूलहृत् ॥७६॥ वातश्लेष्मोदरानाहगुल्मप्लीहकृमिप्रणुत् । यवानिका, उग्रगन्धा,ब्रह्मदर्भा, अजमोदिका, दीप्यका,दीप्या तथा यक्षसाहया ये अजरायन के संस्कृत नाम हैं इसे हिन्दी में अजवायन, फारसीमें नानुका, अंग्रेजी में ( Bishops weed seed) कहते हैं। भजवायन--पाचन करनेराली रुन्नि कारक तीक्ष्ण,गरम,कटु हलकी