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(५२) भावप्रकाशनिघण्टुः भा. टी.।
अफीम-शोषण करनेवाली, ग्राही, कफनाशक, वात पित्तकारक पौर जो पोस्तकी छानके गुण हैं वह प्रायः इसमें हैं ।। २३७ ॥ २३८॥ .
खसबीजानि। उच्यते खसबीजानि ते खाखसतिला अपि । खसबीजानि बल्यानि वृष्याणि सुगुरूणि च २३९॥ शमयंति कर्फ तानि जनयंति समीरणम् । खसपीज और खाखसतिला यह खसखसके नाम हैं। बसपीज-वळकारक, वीर्यवर्धक, अत्यंत भारी, कफको शमन करनेवाले तथा वायुको उत्पन्न करनेवाले हैं ॥ २३९ ।।
सैन्धवम् । सैन्धवोऽस्त्री शीतशिवं पाणिभंथं च सिंधुजम्२४० सैंधवं लवणं स्वादु दीपनं पाचनं लघु । स्निग्धं रुच्यं हिमं वृष्यं सूक्ष्म नेत्र्यं त्रिदोषहत२४१ सैंधव शब्द स्वीलिंगमें नहीं होता । सैंधव, शीतशिव, पाणिमन्य पौर सिन्धु यह सैंधव नमकके नाम हैं । इसको हिन्दी में सेंधा नमक, फारसीमें नमकसंग, अंग्रेजीमें Cloride of Sodium कहते हैं।
संधव नमक स्वादु, दीपन करनेवाला, पाचक हलका, स्निग्ध रुधिकारक शीतल, वीर्यवर्धक, सूक्ष्म, नेत्रोंको हितकर तथा त्रिदोषको नष्ट करनेवाला है ॥२४० ॥ २४१ ॥
गडाख्यम् । शाकंभरीयं कथितं गडाख्यं रोमकं तथा। गडाख्यं लघु वातघ्नमत्युष्णं भेदि पित्तलम् २४२॥ तीक्ष्णोष्णं चापि सूक्ष्म चाभिष्यंदि कटुपाकि च । शाकंभरी गडाख्या और रोमक यह सांभर नूनके नाम है। इसे. हिन्दीमें सांभर नून, फारसीमें मिलहे अवशी कहते हैं।